Tuesday, April 14, 2020

किताबें क्यों पढ़ें, कब पढ़ें, कहां पढ़ें और कैसे पढ़ें?

पूरी किताब एक बार में पढ़ने के बजाए, रोज़ थोड़ी-थोड़ी पढ़ें
एक रिसर्च में पाया गया कि रोज 30 मिनट किताब पढ़ने वालों की उम्र में करीब 2 साल की बढ़ोत्तरी हो जाती है. यह भी पाया गया कि ऐसे लोगों की नौकरी में तरक्की की संभावना अपने सहकर्मियों की अपेक्षा ज्यादा होती है. तो सवाल यह उठता है कि आखिर किताबों में ऐसा भी क्या है, जो ये इतनी जादुई साबित हुई जा रही हैं. दरअसल किताबों में एक ही विषय पर लंबे समय तक टिकाए रहने का गुर, तसल्ली और सुकून है, बाकी जानकारी जो है, सो तो है ही.

अक्सर किताबें पढ़ने के लिए लोग सुझाव देते दिखते हैं. अक्सर इसके फायदे गिनाए जाते हैं. लेकिन किताब पढ़ना इतना आसान काम नहीं. अगर आप कोई ठीक-ठाक किताब पढ़ने के लिए उठा रहें हैं तो यह है कि उसे पढ़ने में आपको 10 से 20 घंटे का समय लगेगा. ऐसे में किताब पूरी कर पाना. उसमें अपना इंट्रेस्ट बनाए रख पाना आसान बात नहीं होती. इसलिए आज क्रमवार अपने अनुभव रख रहा हूं कि किताब क्यों पढ़ें, कब पढ़ें, कहां पढ़ें और कैसे पढ़ें?

पहला सवाल- किताब क्यों पढ़ें?

यह इस प्रक्रिया का सबसे अहम सवाल है. अगर आप स्टूडेंट हैं और रोज़ ज्यादा से ज्यादा नई चीजें जानने-समझने के लिए ही आपके पास सारा समय है तो आपसे किताबों के महत्व के बारे में बात करना बेईमानी है. लेकिन फिर भी बात इसलिए की जानी चाहिए क्योंकि आजकल इंटरनेट के चलते स्टूडेंट्स भी किताबों को छोड़कर इंटरनेट भरोसे हो चुके हैं. लेकिन मैं यहां यह साफ कर देना चाहता हूं कि इंटरनेट पर जानकारियां जुटाकर एक बार को किसी विषय या घटना के बारे में जाना जरूर जा सकता है लेकिन उसकी प्रक्रिया को लेकर एकदम निश्चित नहीं हुआ जा सकता. उसके लिए या तो आपको उस पर डॉक्यूमेंट्री देखनी होगी या किताब पढ़नी होगी. हर विषय पर एक्सप्लेंड वीडियो डॉक्यूमेंटेशन मिल पाना अब भी संभव नहीं हो सका है. साथ ही अगर यह मिल भी जाता है तो कई बार इसमें सभी जरूरी तत्व शामिल नहीं किए जा पाते इसलिए अच्छा यही होता है कि सब्सटीट्यूड तलाशने के बजाए किताबों से ही विषय को कवर किया जाए. किताब से किसी विषय को कवर करते हुए आपको उस विषय के साथ भी लंबा समय गुजारने का मौका मिलता है. ऐसे में उस विषय से न सिर्फ आपकी पहचान और जानकारी में बढ़ोत्तरी होती है बल्कि आपका उस विषय के प्रति लगाव और प्रेम भी बढ़ जाता है.

लेकिन अगर आप स्टूडेंट नहीं हैं और आपके पास नौकरी या व्यापार करते हुए अन्य कामों के लिए सिर्फ सीमित समय ही बचता है तो क्या आपको किताबें ही पढ़नी चाहिए. जी बिल्कुल, जैसा कि ऊपर बताया गया कि नौकरी में तरक्की की आपकी संभावना इससे बढ़ सकती है. मैं सिर्फ अनुमान लगा रहा हूं कि ऐसा क्यों होता होगा? दरअसल किताबें पढ़ते हुए हमारी एक ही विषय पर देर तक ध्यान लगा पाने की क्षमता का अनजाने ही विकास हो जाता है. ऐसे में न सिर्फ ऑफिस के काम हम अच्छे से कर पाते हैं बल्कि हमारे पास उन्हें करने के लिए अच्छे सुझाव भी होते हैं. इतना ही नहीं हम जल्दीबाजी में निर्णय लेने से, कोई बात कहने से भी खुद को रोक पाते हैं. सीधे तौर पर कहें तो किताबें आपकी व्यक्तिगत कूटनीतिक क्षमता का विकास करती हैं. लेकिन नौकरी-पेशा लोगों को इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि अक्सर वे किसी न किसी दबाव में रहते हैं और किताबें उस दबाव को कम करने में या परेशानियों के बेहतर उत्तर ढूंढने में बहुत मदद करती हैं. ऐसे में किताबें पढ़ना दबाव में काम करने वाले इन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में भी मदद करती है.
अगली बार जब सोशल मीडिया स्क्रॉल करने का मन करे तो किताब लेकर बैठ जाएं

अगला सवाल- किताबें कब पढ़ें?

किताबें तब पढ़ें जब आप सोशल मीडिया स्क्रॉल करना चाहते हों. आज के कुछ समय पहले शायद मैं इस जवाब को अलग तरीके से दे रहा होता. लेकिन अनुभव से यह सीखा हूं कि अगर आप सोशल मीडिया स्क्रॉल करना चाहते हैं तो इसका मतलब है कि आप फिलहाल खाली हैं और आपके समय काटना चाहते हैं तो सोशल मीडिया पर तस्वीरें और व्यक्तिगत विचार पढ़ने के बजाए वही 20 मिनट-आधे घंटे का समय किताबों को दीजिए. इस तरह महीने भर में एक अच्छी किताब खत्म कर देंगे और किसी किताब को रोज थोड़ा-थोड़ा पढ़ने से आपके अंदर निरंतरता की आदत स्वत: पैदा हो जाएगी, जो जिंदगी के दूसरे काम करने में भी आपके बहुत काम आएगी. निरंतरता के जरिए आप रोज़ थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करके कोई भाषा सीख सकते हैं. कोई कलाकृति बना सकते हैं और अपनी बुरी आदतों में सुधार भी ला सकते हैं. ऐसे में हम कह सकते हैं कि किताब के जितने फायदे दिखते हैं, हैं उससे कहीं ज्यादा.

इसके अलावा अगर आप नियमित और संतुलित जीवन पहले से ही जीने के हामी हैं तो कोशिश करें कि सवेरे किताब पढ़ सकें. नियमित व्यायाम वगैरह कर, अखबार वगैरह देखने के बजाए, थोड़ी देर किताब भी पढ़ लें फिर अपने काम-धाम में जुटें. ऐसा करने से आपके दिमाग के पास सोचने के लिए फर्जी की चिंताओं और डर से इतर कोई किस्सा-कहानी या कोई जानकारी होगी और आप हल्का महसूस करेंगे. रात को भी सोने से पहले थोड़ी देर पढ़ा जा सकता है. पढ़ते हुए भी सोया जा सकता है लेकिन अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो सोते हुए कोई फिक्शन-थ्रिलर वगैरह पढ़ने के बजाए कोई गरिष्ठ विषय वाली किताब पढ़ें, जिससे जल्दी नींद आ जाए. एक और बात यह कि जब तरोताजा महसूस कर रहे हों, उस समय किताब पढ़ने से सबसे अधिक फायदा होगा.

अगला सवाल- किताबें कहां पढ़ें?

सीधे किताब पढ़ने का कोई विकल्प नहीं है लेकिन धीरे-धीरे तकनीकी की मदद से किताबें पढ़ने के कई विकल्प सामने आ चुके हैं. इसमें सबसे अच्छा और कई लोगों को भा चुका विकल्प है किंडल. शुरुआती दौर में तो किंडल पर किताबें सस्ते में उपलब्ध थीं लेकिन अब उसके प्रमोशन का दौर खत्म होने के बाद ऐसा नहीं रह गया है. ऐसे में पहले से ही किताब पढ़ने का मंहगा विकल्प किंडल खरीद, उसमें भी मंहगी किताबें खरीदने से आपकी जेब पर वजन पड़ना तय है. ऐसे में यह किया जा सकता है कि किंडल खरीदकर उसमें किताबों को जुगाड़ अपने किसी ऐसे दोस्त से करवाया जाए, जो किंडल के लिए किताबें जुटाने के खेल को समझता हो. अंग्रेजी में किंडल पर किताबें जुटाना कोई मुश्किल काम नहीं हैं. हालांकि हिंदी के लिए किंडल पर सीमित किताबें भी हैं. लेकिन ये लगातार बढ़ रही हैं और किंडल पर किताबें पढ़कर आराम से उसका पैसा वसूल किया जा सकता है.

कई मोबाइल ऐप भी पढ़ने में मदद कर सकती हैं लेकिन मोबाइल की स्क्रीन पढ़ने के लिए मुफीद नहीं होती और पाठक की आंखों पर अनावश्यक जोर पड़ता है इसलिए मोबाइल पर पढ़ने से बचें. हालांकि मोबाइल पर किताबों के ऑडियो टेप जरूर सुने जा सकते हैं. हालांकि किताबें सुनने और पढ़ने का एक्सपीरियंस काफी अलग है लेकिन आखिरकार आपको किताबों से तुरंत क्या ही मिलता है, आनंद और जानकारी. दोनों ही चीजें आपको ऑडियो टेप से भी मिल जाएंगीं. किताबें पढ़ें, जरूरी नहीं कि किताबें खरीदकर ही पढ़ें. किताबें मांगकर भी पढ़ सकते हैं. मांगकर पढ़ने से लौटाने की बात दिमाग में होने से किताबें एक तय समयसीमा के भीतर ही पढ़ ली जाती हैं.

एक बार में एक किताब पढ़ने के बजाए दो या दो से ज्यादा किताबें पढ़ने की कोशिश करें

अगला सवाल- किताबें कैसे पढ़ें?

बहुत से लोग एक ही बैठक में किताब खत्म करने का दंभ भरते हैं. मुझे यह तरीका बिल्कुल पसंद नहीं है, खासकर तब जब किताब में 50-60 पन्नों से अधिक हों. किताब को एक बैठक में पढ़ने से आप उसके कुछ सबसे जरूरी बिंदुओं को नजरअंदाज कर सकते हैं. जिससे किताब पढ़ने का बहुत काम फायदा होता है. इसलिए किसी किताब को खत्म होने तक रोज़ थोड़ा-थोड़ा पढ़ा जाना चाहिए. सिर्फ उतना ही जितना एक बार में समझा जा सके. मैं इसी विधि से पढ़ता हूं. डिजिटली आप किताब पढ़ते हैं तब तो किताब सीधे उसी जगह से खुल जाती है लेकिन अगर आप किताब भी पढ़ रहे हैं तो बुकमार्क वगैरह के चक्कर में मत पढ़िए, रोज़ पढ़िए. रोज पढ़ेंगे तो कभी नहीं भूलेंगे कि कहां पर थे, इससे पहले.

इसके अलावा कोशिश करें कि एक साथ दो या उससे भी ज्यादा किताबें पढ़ें. अलग-अलग भाषाओं की किताबें भी पढ़ सकते हैं. ऐसे में न सिर्फ लेखन की बारीकियों, व्याख्या की बारीकियों को समझेंगे बल्कि बातें रखने का हुनर भी सीख जाएंगे. बाकी कभी इस पर विस्तार से लिखूंगा कि नो नॉनसेंस रीडर कैसे बना जाए? आज के लिए इतना ही.

(नोट: आप मेरे लगातार लिखने वाले दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर [सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ] दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.) 

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