Saturday, April 18, 2020

वो टाइमटेबल जो कभी फेल नहीं होता, ऐसे बनाया जाता है

किसी भी टाइमटेबल में निरंतरता जरूर होनी चाहिए
12वीं के तुरंत बाद की बात है. उस दौर की, जो मेरे जीवन में अब तक सबसे निराशाजनक रहा. मैं 12वीं में साइंस को अपने साथ घसीट रहा था और कविताओं-गीतों-गज़लों आदि में रुचि ले रहा था. लेकिन 12वीं में बहुत कम मार्क्स आने के बाद मैंने तय किया कि अब अपने और साइंस दोने के साथ ही अधिक अन्याय नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही मैंने ह्यूमैनिटीज को अपने मुक्ति देने वाले रास्ते के तौर पर पाया. लेकिन असल समस्या यह थी कि मैं कभी बहुत संगठित रहकर पढ़ा ही नहीं था. हमेशा मैंने पढ़ाई किसी न किसी दबाव या डर से की थी. और शायद जब 14-17 की अवस्था में पढ़ाई में स्वत: लग सकता था, तब मेरे पास फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट थे, जो मेरी रूह कंपा देते थे. मैं यहां स्वीकार करूंगा कि मुझे बहुत ही औसत टीचर भी मिले, जो किसी काम के नहीं थे.

खुद से संवाद कीजिए, अपनी कई कमियों को सुधारने में मिलेगी मदद

बहरहाल, जब 12वीं फेल नहीं हुआ और इतने कम नंबरों से पास हुआ कि बता नहीं सकता था, उसके बाद मैंने खुद से अपने पर काम करने के बारे में फैसला किया. मैंने अपने को यह सबसे पहले साफ किया कि देखो सुधरने का और कई चीजों को जीवन में बदलने का समय आ चुका है. कहीं सुना था कि पिछली शताब्दी में यूरोप के लोग प्रेम का अहसास पाने के लिए खुद को ही प्रेमपत्र लिख देते थे, जिसे यूं लिखा जाता था कि जैसे किसी प्रेमी/प्रेमिका ने उसे लिखा हो. फिर जब वह पत्र उनके पास लौटकर आता तो डाकिए से उसे ऐसे शर्माते हुए रिसीव करते जैसे वाकई उसे किसी प्रेमी/प्रेमिका ने लिखा हो. ऐसा ही कुछ प्रयोग मैंने अपने साथ किया और खुद को एक भ्रम में रखा. मैंने अपना एक आदर्श बनाया, जिससे सभी चीजें सकारात्मक और सही तरह से किया जाना अपेक्षित था और उससे अपने असली अहम का लिखित संवाद कराया. इसके लिए मैंने पत्र पोस्ट नहीं किए बल्कि अपने आदर्श के लिखे पत्र, अपनी वास्तविकता को सीधे तौर पर पढ़ाए.

मुझे लगता आया है कि संगति का खासा असर आपपर होता है. ऐसे में मैंने अपने तमाम दोस्तों की संगति छोड़, खुद को अपने आदर्श की संगति में डाला. और इसका मुझे फायदा भी हुआ. लेकिन इस बीच सबसे कठिन जो रहा, वो था पढ़ने की आदत डालना. जैसा मैंने बताया कि मैंने ग्रेजुएशन में साइंस को त्यागते हुए ह्यूमैनिटीज के विषय पढ़े. लेकिन यह जितना सोचा गया, उतना आसान नहीं रहा. पॉलिटिकल साइंस का मुझे P भी नहीं समझ आता था. फिर भी पूरे मनोयोग से इसके समझ आने के लिए रणनीतियां बनाता रहा. अभी तो ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के स्तर पर कोचिंग भी दे सकता हूं. लेकिन सब्जेक्ट में घुसपैठ के लिए मैंने हर लाइन को लिख-लिख कर पढ़ना शुरू किया.

सारे ही प्रयासों में निरतरंता स्थापित करना पाना बहुत जरूरी बात

लेकिन सारे प्रयासों के बावजूद, एक चीज के बिना सारा पढ़ा-लिखा बर्बाद हो रहा था. और वह एक चीज थी, निरंतरता. मैं यह स्वीकार करना चाहूंगा कि यही मेरी अब तक कि सबसे बड़ी उपलब्धि रहा है. और यह निरंतरता पैदा हुई 'डेली डे डिजाइनर' नाम के एक टूल से. जिसे मैं शॉर्ट में 'डी3' कहा करता था. इसमें कुछ खास नहीं होता था. मैं लिखित में अपने अगले दिन की प्राथमिकताओं को सोने से पहले लिख लेता था. साथ ही उस दिन के बारे में एक टिप्पणी भी दर्ज करता चलता था ताकि खुद को स्पष्ट रहे कि मेरे प्रयास काम आ रहे हैं या नहीं.
उतार चढ़ाव दिनों के हिसाब से आते रहेंगे लेकिन आप इनका हिसाब रखने की कोशिश करें तो अच्छा
निरंतरता सिर्फ कई दिनों तक कुछ करते जाना नहीं है. बल्कि एक खास लक्ष्य के साथ और अपने प्रयासों का मूल्यांकन करते हुए कई दिनों तक एक ही विषय पर काम करना है. ऐसे में अब मेरा सालों-साल एक ही विषय पर जुटे रहना मुझे जल्दी सीखने में मदद करता है. इसके अलावा सबसे बड़ी बात की वह मुझे बहुत ज्यादा सुकून देता है. इसलिए मैं यहां पर कुछ बिंदुओं में इसके पीछे अपने कदमों का खुलासा कर रहा हूं-

1. आपको सबसे पहले अपनी प्राथमिकता के कामों की लिस्ट बनानी है. और बाकी कुछ भी करने से पहले उन्हें कर लेना है. जरूरी है कि यह लिस्ट बेहद सोच-समझकर बनाई जाए. ये लिस्ट क्या किया जाए वाले कामों की होने के बजाए, क्या किया जाना है की होनी चाहिए. वरना ये तय है कि आप वे काम नहीं कर पाएंगे.

2. तय करें कि आपके मिजाज के हिसाब से किसी दिन के कामों में सबसे कठिन क्या है? करते समय क्या सबसे ज्यादा समय लेने वाला है. इसके जवाब में जो काम सामने आए, आप सबसे पहले उसे करें. जैसे फिलहाल लिखना मेरे लिए सबसे ज्यादा मुश्किल हो रहा था तो मैं सबसे पहले लिख रहा हूं और उसके बाद ही कोई काम करता हूं.

3. किसी खास दिन में करने को सीमित काम ही अपने पास रखें. बहुत ज्यादा काम किसी दिन के लिए तय कर लेने से आपको रोजमर्रा के काम करने में बहुत परेशानी होगी और कामों के हो जाने से मिलने वाली संतुष्टि के बजाए आपको असंतुष्टि ही होगी.

4. कोशिश करें कि अपनी सफलता और असफलता दर्ज करें. इससे आपको न सिर्फ अगले दिन और अच्छा करने का प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि कुछ मुश्किल कर लेने पर खुशी भी होगी. मैं तो अपने आपको डेली 10 में से कुछ प्वाइंट्स दिया करता था.

5. उठने और सोने के समय को नियत रखिए, यह अगर गड़बड़ होता है तो पूरे दिन का ढांचा और प्लानिंग गड़बड़ा जाती है और आपको उसमें बदलाव करने पड़ते हैं.

6. दोस्तों और साथियों के साथ आगे की प्लानिंग को भी ज्यादातर तय रखने की कोशिश करें. या एक समय नियत कर लें और उन्हें भी इसके बारे में बता दें. अपनी इस प्रायोगिक जीवनशैली के बारे में सभी को जानने दें, छिपाएं नहीं. आपका विश्वास इससे खुद पर बढ़ेगा.

(नोट: आप मेरे लगातार लिखने वाले दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर [सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ] दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)

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