1500-1600 के बीच यूरोपीय भाषाओं को मानकीकृत किया जाना शुरू हुआ |
प्रिंट पूंजीवाद ने विशिष्ट राष्ट्रीय भाषाओं को मजबूती दी और रखी राष्ट्रवाद की नींव
पंद्रहवीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने संचार में क्रांति ला दी. पहले किताबों की बेहद मेहनत के साथ हाथ से नकल की जाती थी, और पुस्तकालय खुद को एक दर्जन संस्करणों के साथ भाग्यशाली माना करते थे. फिर किताबें बड़े पैमाने पर व्यापार की एक वस्तु बन गईं. 1500 तक, करीब 2 करोड़ किताबें छप चुकी थीं. 1500 से 1600 के बीच लगभग 20 करोड़ और किताबों का उत्पादन हुआ. जैसा कि अंग्रेजी दार्शनिक फ्रांसिस बेकन ने इस अद्भुत सदी के अंत में लिखा था, "छपाई ने दुनिया का रूप और अवस्था" बदल दी थी.
वह सही थे. जल्द ही, यहां तक कि भाषाओं को भी (मानकीकरण के जरिए) बदला गया.
तो ये सारी किताबें कौन छाप रहा था? जाहिर है, व्यवसायी. पुस्तक की छपाई यूरोप में उभरने वाले पूंजीवादी उद्यमों के शुरुआती रूपों में से एक था और पूंजीवादी के हर रूप की तरह, व्यापार का यह प्रभाव हुआ कि नए बाजारों की बेचैनी से खोज की जाने लगी.
इससे शायद ही कोई आश्चर्य हो. जब पहली बार छपाई हुई, तो प्रकाशकों ने मुख्यत: महाद्वीप के छोटे से लैटिन पाठक समूह को ही आकर्षित किया. यह बाजार जल्द ही संतृप्त हो गया, हालांकि, अभी जनसंख्या की एक भाषा भाषी बहुसंख्यक जनता बची रही. उनको आकर्षित करने के लिए, आपको उन भाषाओं में किताबों की छपाई करनी थी, जिसे वे समझते थे. और यही प्रकाशकों ने करना शुरू कर दिया.
यह काम पर लग चुका प्रिंट पूंजीवाद था, जो स्थानीय भाषाओं में छपाई की ओर ले गया. इसके साथ ही साथ धर्म सुधार और सोलहवीं शताब्दी का कैथोलिक चर्च में सुधार का आंदोलन भी चल रहा था. छपाई से पहले, रोम ने चुनौती पेश करने वाले विधर्मियों को सहजता से कुचल दिया था. यह ऐसा करने में कैसे सक्षम था? आसान सी बात है- यह सारे संचार को नियंत्रित करता था.
लेकिन जब लूथर ने 1517 में जर्मन में अपना शोध पूरा किया, यह बदल चुका था. किताबों के व्यापार की बदौलत, अब जर्मन भाषा के ग्रंथों के लिए बड़े पैमाने पर बाजार था. 15 दिनों के भीतर, देश के हर भाग में लूथर की बातें पहुंच गईं. यह दो चीजों का सबूत था, जो पहले कभी मौजूद नहीं थीं- एक छपी हुई स्थानीय भाषा और पूरी तरह अनपढ़ जनता और द्विभाषी लैटिन के पाठक वर्ग के बीच के स्थित एक पढ़ सकने वाली वाला वर्ग. जैसे-जैसे यह प्रक्रिया पूरे यूरोपीय महाद्वीप में दोहराई गई, स्थानीय भाषाओं को मानकीकृत किया गया. बड़ी संख्या में अपने अलग अंदाज में फ्रांसीसी, अंग्रेजी और स्पेनिश भाषा बोलने वाले, जो शायद एक-दूसरे को बातचीत के दौरान नहीं समझ पाते, अब छपे हुए में एक-दूसरे से संवाद करते थे.
उसी समय पाठकों को धीरे-धीरे उन लाखों लोगों के बारे में पता चला जो उन्हीं की भाषा बोलते थे, साथ ही उन लोगों के बारे में भी जो उनकी भाषा हीं बोलते थे. राष्ट्रीय विशेषताओं के आधार पर किसी समुदाय की कल्पना करने का यह पहला कदम था.
ये सह-पाठक, जिनके साथ लोग छपाई के जरिए जुड़े थे, इन्होंने मिलकर राष्ट्रीय स्तर के काल्पनिक समुदाय का भ्रूण तैयार किया.
किताब के बारे में-
काल्पनिक समुदाय की अवधारणा को बेनेडिक्ट एंडरसन ने 1983 मे आई अपनी किताब 'काल्पनिक समुदाय' (Imagined Communities) में राष्ट्रवाद का विश्लेषण करने के लिए विकसित किया था. एंडरसन ने राष्ट्र को सामाजिक रूप से बने एक समुदाय के तौर पर दिखाया है, जिसकी कल्पना लोग उस समुदाय का हिस्सा होकर करते हैं. एंडरसन कहते हैं गांव से बड़ी कोई भी संरचना अपने आप में एक काल्पनिक समुदाय ही है क्योंकि ज्यादातर लोग, उस बड़े समुदाय में रहने वाले ज्यादातर लोगों को नहीं जानते फिर भी उनमें एकजुटता और समभाव होता है.अनुवाद के बारे में-
बेनेडिक्ट एंडरसन के विचारों में मेरी रुचि ग्रेजुएशन के दिनों से थी. बाद के दिनों में इस किताब को और उनके अन्य विचारों को पढ़ते हुए यह और गहरी हुई. इस किताब को अनुवाद करने के पीछे मकसद यह है कि हिंदी माध्यम के समाज विज्ञान के छात्र और अन्य रुचि रखने वाले इसके जरिए एंडरसन के कुछ प्रमुख विचारों को जानें और इससे लाभ ले सकें. इसलिए आप उनके साथ इसे शेयर कर सकते हैं, जिन्हें इसकी जरूरत है.
(नोट: आप मेरे लगातार लिखने वाले दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर [सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ] दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)
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