Monday, March 23, 2020

कोरोना के चलते लॉकडाउन में जी रहे हैं तो कर डालिए ये जरूरी काम

आप भी पिछले दिनों में घर में बैठे-बैठे बोर हो गए होंगे और सोच रहे होंगे क्या करें?
निश्चित है कि भारत के ज्यादातर हिस्सों की तरह आप भी इस समय कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौर में जी रहे होंगे और सोच रहे होंगे कि ऐसे दौर में क्या किया जा सकता है?

तो यहां पर जरूरी कामों की एक लिस्ट है, जिन्हें आप घर में ऊब से बचने के लिए कर सकते हैं-

  1. घर का कोना-कोना साफ कर डालिए. किचन की छोटी से छोटी चीज को साफ कर डालिए. पूरी तसल्ली से सफाई कीजिए, घर का कोई कोना बचना नहीं चाहिए.
  2. जो सामान कचरा हो गया हो, उसे छांट दीजिए. सभी तरह के पुराने सामान और कपड़ों को एक जगह इकट्ठा कर लीजिए और जब स्थिति सामान्य हो जाए तबके लिए उसे जरूरतमंदों में बांटने के लिए रख दें.
  3. रोज सवेरे 10 मिनट सूरज की धूप लें. दरअसल लगातार घर में रहने से आपमें विटामिन डी की कमी हो सकती है इसलिए रोज दस मिनट धूप में खड़े हों. सवेरे 9 से पहले ऐसा करेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा.
  4. रोज 15 मिनट के लिए मेडिटेशन यानी ध्यान करें. इसके साथ ही आप अपनी इम्युनिटी बनाए रखने के लिए एक्सरसाइज भी करें तो और अच्छा रहेगा.
  5. चूंकि हम ज्यादातर घर पर ही रह रहे हैं. ऐसे में या तो हमारे पास ज्यादा काम नहीं है या बहुत कम काम है. ऐसे में ज्यादा खाने से परहेज करें. आप एक दिन के लिए व्रत भी रख सकते हैं ताकि आपके शरीर से पूरी तरह बुरे तत्व खत्म हो जाएं.
  6. दिन में केवल तीन बार समाचार देखें. नकारात्मक विचार और ज्यादा नकारात्मक परिस्थितियां बनाते हैं. सकारात्मक बने रहें, आप पूरी तरह से जिंदादिल हैं.
  7. शतरंज, कैरम, लूडो, ताश और व्यापार जैसे खेल अपने मम्मी, पापा, साथियों या बच्चों के साथ खेलें.
  8. घर के सारे जरूरी कागजों को सही से फाइल में रख दें. इसमें से अपने प्रॉपर्टी के पेपर्स, सर्टिफिकेट, बैंक के कागज, दूसरे जरूरी कागजात और बिजली आदि की बिल को अलग-अलग फाइल में सहेज कर रख दें.
  9. अपने फोन/ लैपटॉप/ मेलबॉक्स आदि की भी सफाई कर दें. अपने सभी डिजिटल डेटा का बैकअप बना दें यानी जो तस्वीरें, वीडियो, मेल आप हमेशा के लिए सेव करना चाहते हों उन्हें गूगल ड्राइव आदि पर सेव कर लें.
  10. अपने परिवार से मिलें, जो हमेशा आपसे यह शिकायत करते रहते हैं कि आप उन्हें समय नहीं देते. घर से बैठे-बैठे काम करते हुए यह जरूर करें. उनसे उनके दोस्तों की कहानियां सुनें, अपनी सुनाएं.


सबसे ज्यादा जरूरी काम-


  1. चेक करें कि आपने अपने कहां-कहां सेविंग कर रखी है. उनके सभी कागजात जुटा लें. चेक करें कि आपने अपने इंवेस्टमेंट, इंश्योरेंस पॉलिसी, बैंक अकाउंट, प्रॉपर्टी, लॉकर आदि में किसे नॉमिनी बनाया हुआ है.
  2. अगर आपने अपने और अपने पति/ पत्नी के लिए वसीयतनामा नहीं बनाया है तो उसका एक ड्राफ्ट तैयार कर लें. अगर आप पहले ही बना चुके हैं तो उसे फिर से पढ़ लें.
  3. अगर आप हर साल के खर्चे आदि की बैलेंस शीट बनाते हैं तो यह आपको वसीयतनामा बनाने में मदद करेगी. नहीं तो अपनी पूरी संपत्ति और देनदारियों की लिस्ट बना लें.

इससे भी ज्यादा जरूरी- 


जो सीखा है, उसमें कुछ और जोड़ें, कुछ नया सीखें.


प्लीज इसे उन सभी लोगों तक पहुंचाएं जो खाली बैठना पसंद नहीं करते इसलिए यह माहौल उन्हें पसंद नहीं आ रहा है.

Sunday, March 22, 2020

गिटार भी सीखना हो और स्विमिंग भी तो पहले क्या सीखें? कौन सा हुनर सीखना सही रहेगा, यूं करें तय

कई बार हम यह नहीं तय कर पाते कि कौन सा हुनर सीखना है और समय निकल जाता है...
जैसा कि पिछले ब्लॉग में मैंने लिखा था कि आज इस पर बात होगी कि कैसे तय करें कि कौन सा हुनर सीखना है. तो किसी आदत को डालते हुए या किसी नई चीज को सीखते हुए बड़ी परेशानी तब भी सामने आती है, जब यह समझ नहीं आता कि किस चीज की आदत सबसे पहले डालें और किसकी बाद में? जैसे समझ नहीं आता गिटार सीखें, गाना सीखें, स्विमिंग सीखें या कोई लैंग्वेज. मन सबकुछ सीखने का करता है लेकिन समझ नहीं आता कि पहले क्या किया जाए और ऐसे ही सोचते-सोचते समय निकल जाता है और इन सारी चीजों में से कुछ भी नहीं सीख पाते. फिर जब खुद के बारे में सोचते हैं तो परेशान होते हैं और खुद पर बेहद औसत होने का आरोप लगाते हुए चिंता करते हैं.

लेकिन इसमें चिंता की बात नहीं है. थोड़े धैर्य के साथ आपको परिस्थितियों के बारे में बैठकर सोचना होगा और तय हो जाएगा कि आपको नई गतिविधि के तौर पर क्या करना चाहिए या नई स्किल के तौर पर क्या सीखना चाहिए. इसकी प्रक्रिया बहुत आसान है. सबसे पहले बैठकर याद कीजिए कि क्या करने के लिए आपकी तारीफ होती रही है. क्या स्कूल के दिनों तक आपकी तारीफ किसी गाने को लेकर हुई, डांस को लेकर हुई, पेंटिंग को लेकर हुई या पढ़ाई को लेकर हुई?


समय लेकर सोचिए वो एक हुनर क्या था जिसे लेकर आपको कई लोगों से मिला कॉम्पिमेंट

आपको दोस्तों ने, आपके टीचर्स ने किन बातों को लेकर आपको कॉम्प्लिमेंट किया. हो सकता है कि आज मेरे ऐसा कहते समय आपको लग रहा हो कि अब तक आपको ये बातें कहां ही याद रही होंगीं. लेकिन मेरी बात मानिए, आपको सब याद है. इंसान कभी कुछ नहीं भूलता. खासकर ऐसी चीजें. याद करने की कोशिश कीजिए, कब-कब, किस-किस बात पर लोगों ने आपकी तारीफ की. मान लीजिए आपको समझ आता है कि आपकी तारीफ अच्छी अंग्रेजी होने के चलते की गई तो अब म्यूजिक सीखने और फ्रेंच सीखने में सोचने के बजाए तुरंत फ्रेंच क्लासेज ज्वाइन करने का मन बना लीजिए.

अब सोचिए कि सीखी हुई इंग्लिश की स्किल्स का इस्तेमाल आप कैसे कर रहे हैं. क्या इसने आपके करियर को कोई सहारा या मजबूती दी? क्या इसने आपके जीवनस्तर और जानकारी में कोई इजाफा किया. अगर आपको लगता है कि ऐसा हुआ है तो फ्रेंच क्लासेज खोजनी शुरू कर दीजिए. अब सोचिए कि क्या आज भी आप नए अंग्रेजी शब्द सीखने और ग्रामर के सही इस्तेमाल को लेकर नई चीजें सीखते रहते हैं, अगर हां तो फीस भर दीजिए और जल्द से जल्द फ्रेंच की क्लासेज शुरू कर दीजिए.

दो हुनर के बीच कौन सा पहले सीखें, ये तय करने के लिए आपको थोड़ी देर बैठकर सोचने की जरूरत होगी...

इमारत के सबसे ऊपर भारी से भारी कंगूरे तभी बन सकेंगे, जब नींव पहले से मजबूत हो

ये मत सोचिएगा कि आप म्यूजिक सीख नहीं पाएंगे इसलिए मैंने आपको फ्रेंच सीखने को कहा. सीख तो आप कुछ भी लेंगे लेकिन उस सीखे हुए की क्या क्वालिटी होगी और वह आपकी जिंदगी में कितना काम आएगा यह आपके दिमाग पर निर्भर करता है. जब आपने अंग्रेजी के प्रति अपना मन बनाया और तेजी से उसे सीखना शुरू कर दिया, तभी साफ हो गया कि देवनागरी से अलग लिपि वाली भाषा को सीखने के लिए भी आपका दिमाग आसानी से तैयार है. ऐसे में बहुत मेहनत के साथ म्यूजिक सीखने से अच्छा है कि कम मेहनत और ज्यादा मज़े के साथ फ्रेंच सीखी जाए.

यानी अगर आप स्कूल की उम्र पार कर चुके हैं तो कंगूरे उसी इमारत के शानदार बनाने की कोशिश करें, जिस इमारत की नींव भी गहरी डाली गई हो. वरना किसी भी मुश्किल परिस्थिति यानी भूकंप आदि में वह इमारत ढह जाएगी.

ऐसे ही अगर आपकी तारीफ डांस को लेकर, पढ़ाई को लेकर और गाने को लेकर होती रही हो तो कोशिश करें कि उसी से जुड़े हुए हुनर सीखने की कोशिश करें.


इस तरह से करेंगे तय करने पर दिमाग न सिर्फ सीखने को तैयार रहेगा बल्कि इंज्वाए भी करेगा

अब आप यह पूछ सकते हैं कि तब क्या जब तारीफ तो लोगों ने बच्चा समझ कर की हो और आज हम उसे सीरियस लेते हुए डांस क्लास में एडमिशन ले लें. ऐसी स्थिति में मैं यही कहूंगा कि आप भूल जाइए एक बार तय करने के बाद कि आपकी तारीफ डांस को लेकर हुआ करती थी. दरअसल आपके दिमाग ने आपको यही याद दिलाया है कि आपकी तारीफ डांस को लेकर हुआ करती थी और लोग आपको देखना पसंद करते थे.

दिमाग ने जानबूझकर याद दिलाया है क्योंकि वह आपको एक डांसर के तौर पर पसंद करता है और उसी के तौर पर जानना चाहता है. इसलिए डांस सीखना शुरू कर दीजिए.

इसी तरह जो आपका दिमाग आपको बताए, जरूरी नहीं कि वह सच ही हो लेकिन यह जरूर होगा कि आपका दिमाग उस हुनर को पसंद करता होगा. और उसे न सिर्फ तेजी से सीखेगा बल्कि उसे सीखने के लिए धैर्य बनाने में भी आपकी बहुत मदद करेगा. तो बस यही है सिंपल सी ट्रिक की कैसे समझें कि आदत के तौर पर किस चीज को विकसित करना है और बुरी आदत के तौर पर किस चीज को छोड़ना है.


मेरे रेज्योल्यूशन अभी जिंदा, लग रहा है छोड़ दूंगा नाखून चबाना

अब आ जाते हैं मेरी नई आदतों पर. जिनके लिए मैंने रेजोल्यूशन ले रखा है. तो मैं बता हूं कि आज भी मैंने कल की तरह ही 15 मिनट की वॉकिंग एक्सरसाइज की. साथ ही मैंने नाखून भी नहीं चबाए. हां ऐसा जरूर हुआ कि मैंने एक बार मुंह में हाथ डाल लिया और दांतों से त्वचा का कुछ भाग काटा लेकिन याद आते ही मैंने उंगलियां मुंह से बाहर निकाल लीं. मुझे लगता है कि मेरा व्रत नहीं टूटा.

आप मुझे पढ़ें और बताएं कि किसी आदत को डालने और किसी हुनर को सीखने में मेरी ओर से क्या मदद हो सकती है. और हो सके तो मुझे भी इनके लिए सुझाव भेजें. बाकी कोरोना वायरस के प्रसार के दौर में आप सभी सुरक्षित रहें और जितने दिन घर में हैं एक अच्छी आदत डालने की कोशिश जरूर करें. जारी...

(नोट: आप मेरे लगातार नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने के दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर (सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ) दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)

Saturday, March 21, 2020

किसी अच्छी आदत को डालने और बुरी आदत को छोड़ने के लिए 21 दिन की प्रैक्टिस क्यों है जरूरी?

किसी आदत को डालने में 21 दिन लगने की बात करने के पीछे कई सारी वजहें हैं (फोटो साभार- विशाल भूटानी)
कल मैंने जोर देकर कहा था कि किसी आदत को डालने में 21 दिन का समय लगता है. वैसे अगर आप मुझसे पूछेंगे- किसने कहा तो मैं जवाब नहीं दे पाऊंगा. मैंने कभी इसके लिए पढ़ाई नहीं की. यह पढ़ाई करने वाली बात भी नहीं है, मेरे अनुभव की बात है. बचपन में कभी सुना कि 21 दिन लगते हैं और देखा कि जो चीजें लगातार 21 दिन कर लीं, वे आदत में आ गईं. बल्कि न सिर्फ 21 दिन में अच्छी आदतें बनीं बल्कि बुरी आदतें छूटीं.

जैसे मैं कानपुर से होने के नाते डिक्शनरी को डिक्शन...री बोला करता था. पूरा कानपुर बोलता है. लेकिन अपनी आदत को कुछ बार टोके जाने के बाद मैंने लगातार पढ़ने के दौरान डिक्शनरी बोलते हुए सुधार लिया. हालांकि मैंने 21 दिन गिने नहीं लेकिन रोज पढ़ाई करने के चलते यह ज्यादा आसान रहा. मैंने इसे 21 बार से ज्यादा ही सोचकर डिक्श...नरी कहा और अंतत: यह हो डिक्शनरी हो गई.

बोलने को छोड़ भी दें तो मेरी एक और आदत पढ़ते-पढ़ते सो जाने की थी. अब किताब चाहे कितनी बोरिंग क्यों न हो जाए, आप मुझे किताब लेकर सोता नहीं पाएँगे. कभी अपवाद हो सकता है, जब मैं बहुत थका होऊं लेकिन ज्यादातर ऐसा नहीं होगा. मोबाइल लेकर भी नहीं. हमेशा उसे सही जगह पर रखकर ही सो रहा होऊंगा.


तीन हफ्ते देखने में बेहद कम लेकिन आपकी जिंदगी में ला सकते हैं बड़े बदलाव

बहरहाल फिर से 21 दिन में आदत डालने और आदत छोड़ने की बात पर वापस आ जाते हैं. तो फिलहाल इसी 21 दिन के फॉर्मूले का यूज कर मैं अपनी नाखून चबाने और एक्सरसाइज करने की आदत क्रमश: छुड़ाने और बनाने पर काम कर रहा हूं. वैसे इनकी तरक्की कैसी है, यह बाद में बताऊंगा. पहले यह बताता हूं कि अच्छी आदत का 21 दिन लगातार प्रयास और बुरी आदत का 21 दिन लगातार निषेध क्यों?

ऐसे तो तीन हफ्ते बहुत ज्यादा नहीं लगते लेकिन यह आपकी जिंदगी में बड़े बदलाव के लिए काफी होते हैं.


21 दिन में या तो किसी प्रयास को आदत बना लेंगे या एक गलत आदत से बच जाएंगे

कई बार आप खुद को जिस चीज की आदत डालने के लिए तैयार कर रहे होते हैं. वह चीज आपके अंदाज, आपके व्यक्तित्व के मुताबिक नहीं होती है. जैसे अगर मैं कोशिश करूं कि आदत डालूंगा, प्राइमटाइम पर किसी भी न्यूज एंकर की डिबेट 21 दिन लगातार देखने की तो यह मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा क्योंकि मैं भी इसी धंधे में लगा हूं और जानता हूं कि यह खेल कैसे चल रहा है. ऐसे में कुछ दिन जज करता रहूंगा और फिर इस काम को व्यर्थ मानकर छोड़ दूंगा. दरअसल यह काम मेरे लिए नहीं था और उसकी आदत डालकर मैं अपने उद्देश्यों को व्यर्थ कर रहा होता.

ऊपर जो मैंने लिखा उसमें कुछ भी गलत नहीं है. यानि किसी आदत को डालने के लिए बहुत जरूरी है आपके पास एक जरूरी मकसद हो. और यह मकसद मात्र आपके दिमाग का फितूर न हो बल्कि अपने आसपास के लोगों से इस मकसद को लेकर जिक्र किया हो और उन्होंने भी इस मकसद को लेकर आपका उत्साहवर्धन किया हो. उत्साहवर्धन न सही लेकिन इसके आप पर सकारात्मक प्रभाव की आशा जताई हो.


सिर्फ मकसद काफी नहीं आदत के लिए गजब के धैर्य की भी जरूरत

लेकिन इस 21 दिन के कार्यक्रम में सिर्फ मकसद ही सबकुछ नहीं. आप 2-4 दिन में ही या तो बोर हो जाएंगे, या तो यह सोचने लगेंगे कि यह नई चीज क्यों ही कर रहा हूं और बहुत कम मामलों में इसे लेकर बहुत आशावान हो जाएंगें लेकिन किसी भी परिस्थिति में इसे छोड़िएगा मत. दरअसल इस 21 दिन के कार्यक्रम में जो चीज सबसे ज्यादा जरूरी है, वह है धैर्य. आपने अपने लिए जो चुन लिया है, उसे बिना उसके फायदे नुकसान सोचे 21 दिन करते रहें. हालांकि ऐसा नहीं कि गंभीर परिस्थितियों में या नुकसान के दौर में भी ऐसा करें लेकिन जब तक चीजें सामान्य हों अपनी नई प्रैक्टिस को 21 दिन लगातार धैर्य के साथ करें.

पढ़ते हुए सो जाने की समस्या कई सारे लोगों को होती है...    (फोटो क्रेडिट- विक्टोरिया, etsy.com)

21 दिनों बाद आप परिस्थितियों के प्रति तटस्थ होकर कर सकते हैं निर्णय

दरअसल 21 दिन ही इतना वृहत अनुभव आपको दे सकेगा कि आप सही-गलत आदत, उसके फायदे-नुकसान आदि का सही अनुमान लगा सकें. इस वृहत अनुभव से ही आप बिल्कुल तटस्थ हो सकेंगे और विचार कर सकेंगे कि 21 दिन आपने जो किया, उससे क्या पाया और क्या खोया? साथ ही आप समझ जाएंगे कि इसे जारी रखेंगे तो आगे के भविष्य पर कैसा असर होगा.

मसलन आप कोई भाषा सीख रहे हों तो आप 21 दिन में करीब 100 शब्द सीख जाएंगे. ऐसे में आप उसके मामूली वाक्यों को बोलने और समझने लगेंगे. अब निकट भविष्य में उस भाषा में अवसर और उसके फायदे आदि तय करेंगे कि आप उस भाषा को सीखना चाहते हैं या नहीं. ये और कुछ अन्य फैक्टर मिलकर 21 दिन में आपके दिमाग में यह बात साफ कर देंगे कि आपको यह काम कर लेना है या छोड़ देना है.


21 दिन में का आदत डालने का कार्यक्रम पूरा किया तो हमेशा आदत डालने में होगी आसानी

साथ ही 21 दिन का कार्यक्रम हमेशा अपने साथ अच्छी प्लानिंग और निरंतरता का तोहफा आपको देकर जाएगा. यानी की आप जरूरी चीजों के लिए न सिर्फ काम करना सीख जाएंगे बल्कि आप यह भी जान जाएंगे कि लगातार उनके लिए समय कैसे निकाला जाए. इससे आगे की आदतें डालने में भी मदद मिलेगी.

अब बात मेरी आदतों की करें तो मुंह के पास हाथ जाते ही जैसे दिमाग डांट देता है. अब मेरे नाखून बड़े हो रहे हैं. मैं इनके ठीक-ठाक बड़े हो जाने के बाद इनकी तस्वीर पोस्ट करूंगा. इसके अलावा मैंने आज भी एक्सरसाइज की और स्ट्रीक को टूटने नहीं दिया. आज मैंने 'वन माइल वॉक' नाम की एक्सरसाइज की. आप यूट्यूब पर इस नाम से ढूंढेंगे तो आसानी से आपको मिल जाएगी.

दूसरे दिन भी आसानी से आदतें बनाने की तरफ बढ़ता रहा

मैंने एक्सरसाइज आज नहाने से पहले ही की. हालांकि दोपहर के 2 बज रहे थे. मुझे आज दिन में हरारत और जुकाम महसूस हुआ. क्योंकि मैं जर्मन एंबेसी के चक्कर 5 दिन पहले मार रहा था तो थोड़ा डरा भी रहा लेकिन सभी चीजें सही से पूरी कीं और देखिए भले ही दो घंटे लेट रहा होऊं, पर ब्लॉग भी लिख ही दिया है.

कल हम बात इस बारे में करेंगे कि कैसे तय करें कि हमें क्या आदत डालनी चाहिए और उसके लिए कैसे प्रयास करें?
(नोट: आप मेरे लगातार नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने के दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर (सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ) दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.) 

Friday, March 20, 2020

सिर्फ Motivation से नहीं पड़ेगी अच्छी आदत, इन 3 बातों का रखना होगा ध्यान

कोई आदत डालने के लिए आपको 3 बातें ध्यान रखनी होंगीं- पहली- मोटिवेशन (प्रेरणा), दूसरी- वायाबिलिटी (व्यवहार्यता) और तीसरी- पेशेंश (धैर्य)
कल हमने बात इस पर खत्म की थी कि अच्छी आदतें डालने के लिए सिर्फ जोश की जरूरत नहीं होती है. हालांकि अगर मैं कहूं कि आदत डालने के लिए प्लानिंग की जरूरत होती है तो आपको लगेगा, मोटिवेशनल स्पीकर जैसी बात कर रहा हूं. तो मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मैं यहां किसी काउंसलर या मोटिवेशनल स्पीकर जैसी बातें नहीं करना चाहता. मेरे पास सिर्फ एक स्ट्रैटजी है, जो मैंने अपने अनुभवों से पाई है, सिर्फ उसे आपके साथ शेयर करना चाहता हूं.

ऐसे में अगर आप मानते हैं कि कई बार आपने भी जोश में आकर कोई कदम उठाया है और मुश्किल से चार दिन भी पूरा न करके जल्द ही उसे छोड़ दिया है लेकिन चाहते हैं, आगे से ऐसा न हो तो-

इसके लिए आपको ये तीन बातें ध्यान रखनी होंगीं- पहली- मोटिवेशन (प्रेरणा), दूसरी- वायाबिलिटी (व्यवहार्यता) और तीसरी- पेशेंश (धैर्य).

मोटिवेशन या जोश का कोई काम पूरा करने में 10% से ज्यादा रोल नहीं होता

वैसे इनमें से आपके-मेरे पास कुछ भी नहीं होता है. आप चाहे जो भी हों, ये चीजें लेकर पैदा नहीं होते, इसी दुनिया में देखते-सुनते दिमाग में ये चीजें पैदा होती हैं (हालांकि कुछ रोल जेनेटिक्स का भी होता है). तो ये तीनों ही बातें स्टेट ऑफ माइंड जैसी हैं. ये तीनों ही आपको दिखेंगीं नहीं लेकिन इनकी प्रैक्टिस से आप अपने जीवन में जो बदलाव लाएंगे वह आपको दिखेगा. चाहे वह किसी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट पर बजाई गई कोई धुन हो, या आपके पेट में एब्स. सीधी बात अब अपने ऊपर लिखे तीनों औजारों पर आते हैं-

तो मोटिवेशन यानी प्रेरणा वही है जिसकी बात तमाम मोटिवेशनल स्पीकर करते हैं. "अपने जीवन को बदलने के लिए उठ बैठिए, जुट जाइए. आप ही खुद को बदल सकते हैं," जैसी चीजें. ये बातें आपके दिमाग में भी उठती रहती हैं, इसलिए आप मोटिवेशनल स्पीकर जैसे लोगों की बातों से रिलेट कर पाते हैं. लेकिन यकीन मानिए कि यह प्रेरणा और मोटिवेशन पानी में तैरते ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की तरह होते हैं. जो पानी से ऊपर सिर्फ जरा सा दिखते हैं और उनका 90% भाग नीचे पानी में तैरता रहता है. वैसे ही आपके जोश-ओ-जुनून का पानी के ऊपर तैरते आइसबर्ग जितना ही मतलब है. बाकी दो बातें ही वह 90% भाग बनाती हैं, जो तय करता है कि आप किसी काम को पूरा कर पाएंगे/ किसी हुनर को सीख पाएंगे या नहीं.

जोश में कोई फैसला करने से पहले उसकी व्यवहार्यता के बारे में जरूर सोचें

ऐसे में बिल्कुल जोश में जाइए और बेस्ट पॉसिबल प्लान लेकर जिम में पैसे देकर आइए, या बेहतरीन किताबों की लिस्ट चेक करके उसमें से अपनी पसंद के विषय की किताब खरीदिए, या किसी ऑनलाइन कोर्स में एडमिशन लीजिए, या कोई भाषा सीखनी शुरू कीजिए लेकिन उससे पहले अगले कदम पर विचार जरूर कर लीजिए.

भले ही इस अगले कदम के बारे में पहला कदम उठाने से पहले सोचने को मैंने कहा लेकिन इस दूसरे कदम को पहले कदम के बाद ही काम में लाना होता है. इसके बारे में सोच लेना ही दूरदर्शी होने की पहचान होता है. दूसरा कदम का नाम मैंने बताया है- वायाबिलिटी यानी व्यवहार्यता. जो आप कर रहे हैं, वह व्यवहार्य है या नहीं. जैसा मैंने कहा कि ये सारी ही चीजें पहले से कुछ भी नहीं होतीं, ये सिर्फ स्टेट ऑफ माइंड हैं. ऐसे में अगर कोई प्लान वायबल नहीं है तो आपको उसे आपको वायबल बनाना होगा.

क्रिएटिव तरीके से अपने रिजोल्यूशन को पूरा करने के लिए बनाएं रास्ते

अपनी पसंदीदा हरकत को अपनी नई बनाई जा रही आदत से जोड़ें

जैसे आपने सोच लिया कि आप किताब पढ़ेंगे या जिम करेंगे लेकिन 4 दिन से ज्यादा लगातार नहीं कर सके. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने अपने प्लान को वायबल नहीं बनाया. दरअसल आपको जिम करने को पकड़ना ही नहीं था. आपको पकड़ना था अपने शौक को. जाहिर है अगर आपका बॉडी बिल्डिंग और डाइट का शौक होता तो आपको जिम जाने के तरीके मुझे बताने ही नहीं पड़ते. तो आप देख लो आपको क्या शौक है?

क्या आपको कोई किताब पढ़ने का शौक है, कोई खास म्यूजिक सुनने का शौक है, कोई न्यूज बुलेटिन सुनने-देखने की आदत है (जैसे बहुत से लोग रवीश को रोज जरूर देखते हैं. वहीं बहुत से लोग अर्णब को जरूर देखते हैं) तो इसके आधार पर अपनी नई आदतों को वायबल बनाने की कोशिश करें. ये सोच लें कि इन कामों को मुझे घर पर पड़े हुए करने के बजाए जिम में करना है. बल्कि जिम को भी ऐसे समय रखें, जब आपके ऑफिस जाने या वहां से लौटने का समय हो उसके एक घंटे पहले या ऑफिस के तुरंत बाद. साथ ही घर से ऑफिस के रास्ते में जिम खोज सकें तो और अच्छा. अपने कान में पॉडकास्ट या म्यूज़िक लगाकर जिम में कुछ-कुछ करते रहें. यकीन मानिए धीरे-धीरे आपकी जानकारी वहां की चीजों को लेकर जैसे-जैसे बढ़ेगी, न सिर्फ आप अवेयर होंगे बल्कि आपको इंट्रेस्ट भी आने लगेगा.

अपने हिसाब से आदतों में व्यवहार्यता लाने की करें कोशिश

अब एक्स्ट्रीम तरीका बताता हूं. ऊपर दी चीजें करने पर भी अगर आपको लगता है कि अब भी आपसे जिम नहीं हो पा रहा है. तो सिर्फ ज्यादा पानी पीना शुरू कर दीजिए. जितनी देर घर पर रहें. उतनी देर ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं. इससे आपको ज्यादा से ज्यादा पेशाब आएगी. पेशाब करने के बाद आप जब हाथ धोने जाएं तो उसके साथ ही सिर्फ दो पुशअप दीवार के सहारे कर लें. इस तरह से अगर आप ज्यादा पानी पीने से 7-8 बार भी पेशाब जाते हैं तो आप 14 से 16 पुशअप दिन में कर रहे होंगे. ऐसा नहीं कह रहा कि मैं आपको यही करना है लेकिन यह मेरा आजमाया एक तरीका है, जिसे आधार बनाकर आप भी ऐसा ही कुछ प्लान कर सकते हैं. मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि अपनी पसंदीदा चीजों को या कह लें कि जिन चीजों को आप आदत की तरह करते हैं, उनसे आप किसी मुश्किल आदत को जोड़ दें. इससे मुश्किलें आसान हो जाएंगीं.

21 दिन तक किसी नई आदत को दोहराते रहने में काम आएगा धैर्य

अब आती है बात अंतिम लेकिन सबसे जरूरी हथियार- पेशेंस यानी धैर्य की. यह पेशेंस ही आपकी आदत को 21 दिनों का इन्क्यूबेशन पीरियड पार कराएगा. (मैं पहले ब्लॉग में अपने 21 दिन के पीरियड के विश्वास के बारे में बता चुका हूं, उसे यहां पढ़ें) आपको लगे कि मैं क्यों ही कर रहा हूं. इससे मुझे परेशानी हो रही है फिर भी उस काम को तीन हफ्ते तक कीजिए. इन 21 दिनों में या तो आपको उस काम के फायदे दिखने लगेंगे या उसकी व्यर्थता समझ आ जाएगी. ऐसे में अगर आपको कोई काम व्यर्थ लगे तो उसे छोड़ दीजिएगा लेकिन 21 दिन बाद ही. या हो सकता है कि आपको यह लगने लगेगा कि काम तो सही है लेकिन मैं इसे गलत तरीके से कर रहा था, इसे इस तरह से करना चाहिए. जैसे 21 दिन किसी भाषा की ग्रामर सीखने के बाद आपको यह भी लग सकता है कि मुझे तो सीधे इसके गाने सीखकर, उसके अर्थ याद करने से तेजी से भाषा आ रही है. अगर आपके ऐसा लगे तो आप अपना तरीका बदल सकते हैं लेकिन हर तरीके को 21 दिन जरूर कीजिएगा.

इस 10 मिनट के वीडियो के जरिए कर रहा शुरुआती एक्सरसाइज

यहीं आपको अपने अंतिम हथियार पेशेंस का सहारा लेना पड़ेगा. आगे की चर्चा के दौरान कभी हम पेशेंस पर बहुत विस्तार से बात भी करेंगे. तब तक आप ऊपर बताए हथियारों को और धारदार बनाने पर काम करें. तब तक मैं कल से अब तक आपको पर्सनल लेवल पर अपनी जिंदगी में आए बदलावों के बारे में बता देता हूं.-

कल जैसा कि मैंने रेजोल्यूशन लिया था कि नाखून नहीं खाऊंगा और एक्सरसाइज यानि व्यायाम करूंगा तो बता दूं कि दोनों ही काम मैंने पहले दिन सफलतापूर्वक किए हैं. कई बार ऊंगलियां मुंह तक पहुंची लेकिन मैंने खुद को रोक लिया. आशा है जल्द ही उंगलियां मुंह तक जाना भी बंद हो जाएंगी. और अपनी वायाबिलिटी को देखते हुए कोरोना के प्रसार के दौर में मैंने  घर पर ही 10 मिनट की एक्सरसाइज नहाने के बाद ली. हालांकि कल से मेरा इसे नहाने से पहले करने का प्लान है. ये थी वह 10 मिनट की एक्सरसाइज-

10 MINUTE MORNING WORKOUT (NO EQUIPMENT)

अगर आप पढ़ रहें तो मुझसे सवाल पूछने और नई बातें सुझाने से न चूकें

किसी आदत को डालने का प्लान कर रहे हों तो मुझे बताएं, मेरी कोशिश रहेगी कि आपकी कुछ मदद कर सकूं. पढ़ाई करने वाले बच्चों या अपने ऐसे दोस्तों जो बहुत भटकते हों, इस ब्लॉग के बारे में बताएं. मैं रोज़ आदतें डालने के तरीके लिख रहा हूं और मेरी कोशिश है कि कोरोना से हमारी लड़ाई के दौरान ये तरीके न सिर्फ हमें इस लड़ाई से सफलतापूर्वक उबारेंगे बल्कि इस दौर को पार करते-करते हम कुछ अच्छी आदतें सीख चुके होंगे और अपनी जिंदगी में बेहतर महसूस कर रहे होंगे. कल मैं आपको विस्तार से बताऊंगा कि मैं किसी आदत को डालने के लिए किसी काम को 21 दिन लगातार करने पर इतना जोर क्यों देता हूं. कल मैं आपको यह भी बताऊंगा कि मेरे रिजोल्यूशन का क्या हुआ. फिलहाल जारी...

(नोट: आप मेरे लगातार नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने के दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर (सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ) दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)


अच्छी आदतों को लेकर पिछले ब्लॉग आप यहां पढ़, पढ़ा सकते हैं-


अच्छी आदत कैसे डाली जाए?

Thursday, March 19, 2020

अच्छी आदत कैसे डाली जाए?

अच्छी आदत डालने के लिए जोश से ज्यादा समझदारी की जरूरत होती है...

जब हम अकेले होते हैं और अपने बारे में सोचते हैं तो शायद ही कभी खुद को पूरी तरह संतुष्ट पाते हैं. अक्सर यही समझ आता है कि बहुत सारा समय हम गैर-जरूरी बातों में खर्च कर रहे हैं. उस समय लगता है कि अगर इस समय को बचाया जा सकता और किसी हुनर को सीखने में लगाया जा सकता तो हम कहां से कहां होते.

ऐसा भी नहीं कि हमने इसके लिए प्रयास न किए हों. जब कभी हमें अपनी अपनी ऐसी कमी का एहसास होता है तो जोश में आकर कभी हम कोई किताब उठा लेते हैं, जिम में इनरोल हो जाते हैं, पेंटिंग सीखने या बनाने लगते हैं, गाना या कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखने लगते हैं, कोई भाषा सीखने लगते हैं या हेल्दी खाना खाने लगते हैं. लेकिन ऐसे सारे ही प्रयास 3 से 4 दिन भी लगातार नहीं चल पाते और कुछ दिनों में हमारा ध्यान दूसरे लक्ष्यों की ओर, दूसरी प्राथमिकताओं की ओर खिंच जाता है.

हमारे आसपास ही ऐसे लोग जो नौकरी के साथ सीख लेते हैं हुनर

ऐसा खासकर तब जरूर होता है, जब व्यक्ति नौकरीपेशा हो. ऐसी स्थिति में हमारे पास हमेशा यह बहाना होता है- 'नौकरी भी तो करनी है, कमाना बहुत जरूरी है. कमाएंगे नहीं तो यह सब क्या ही काम आएगा!' लेकिन कुछ लोग हमारे ही बीच ऐसे भी होते हैं, जो ऐसे प्रयासों में महारथी साबित होते हैं, वे रोज़ अखबार पढ़ रहे होते हैं, रोज़ किताबें पढ़ रहे होते हैं, लगातार किसी लैंग्वेज की प्रैक्टिस कर रहे होते हैं, रोज़ लिख रहे होते हैं और सबसे ज्यादा जरूरी, खुद को समय दे रहे होते हैं, नई प्लानिंग के लिए, अपने बारे में और अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए.

भले ही यह थोड़ी सी अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात लगे लेकिन मैं यहां बता देना चाहूंगा, 'मैं खुद को एक ऐसा ही इंसान मानता हूं.'

अपनी आदतों के जरिए कई मुश्किल लक्ष्य पाने में रहा सफल

ऐसा नहीं कि मैं यहां यह दावा कर रहा हूं कि मैं महान हूं या यह सब करके मैंने कोई बहुत बड़ी सफलता पा ली है. या जो लोग ऐसा नहीं कर रहे, वे अपनी जिंदगी बरबाद कर रहे हैं. लेकिन मैं यह दावा जरूर कर सकता हूं कि मैंने इस प्रयास के जरिए पिछले कुछ सालों में दो विदेशी भाषाओं की ठीक-ठाक जानकारी हासिल की है. भारत के बाहर क्या-क्या चल रहा है, इसे लेकर ठीकठाक जानकारियां हासिल की हैं. कुछ प्रसिद्ध तात्कालिक किताबों के बारे में जानकारी हासिल की है और उनके संक्षिप्त पढ़े हैं. सिर्फ 2019 में कुल 19 किताबें अगले कवर से पिछले कवर तक पढ़ीं.

इसके अलावा मैंने न सिर्फ पर्यावरण को बचाने के लिए साइकिल चलाने की ठानी बल्कि सफलतापूर्वक साइकिल से ऑफिस आने-जाने की आदत भी डाल ली. एक और बात ऐसा इंसान बनने के बाद मैंने न सिर्फ कई सारे दोस्त बनाए बल्कि उनके साथ अच्छा-खासा समय भी बिताया, हंसा, चाय की चुस्कियां लीं, बचपन और दूरदर्शन के किस्से शेयर किए, 500 किमी से ज्यादा की बाइकिंग की (जबकि जीवन में एक दौर तक मेरे दोस्तों की संख्या एक हाथ की उंगलियों से भी कम रही). इतना ही नहीं मैंने अपनी एक दोस्त को पॉलिटिकल साइंस पढ़ाकर इग्नू में 60 परसेंट से ज्यादा मार्क्स भी दिलाए.

यहां यह तस्वीर दे दी है ताकि जो मुझे नहीं जानते उन्हें यह न लगे मैं कुछ ज्यादा बढ़कर कर रहा हूं. पहला स्क्रीनशॉट दिखाता है कि लगातार सवा साल तक अपने लेसन रोज करने के बाद मैं एक दिन अपनी स्ट्रीक नहीं बचा पाया था. फिलहाल फिर पिछले दो महीने से फिर कोई लेसन नहीं मिस किया है...

एक बड़े उद्देश्य से जुड़े होने का अहसास आपको देता है संतुष्टि

मुझे पता है कि इसे पढ़कर आसानी से कुछ निंदक मेरे आत्ममुग्ध होने का अनुमान लगाएंगे. लेकिन मैं यकीन से कह सकता हूं कि लोग ऐसी ही जिंदगी की कल्पनाएं कर रहे होते हैं और न पाने पर अपना आत्मविश्वास कम कर रहे होते हैं. मेरा विश्वास है कि बहुत से लोग इनके बजाए पब जाने को, नए-नए लड़के या लड़कियों के साथ वक्त गुजारने को और दिन-रात सोशल मीडिया पर तारीफें बटोरने को ज्यादा खुशी देने वाली चीजें भले ही मानते हों लेकिन इस तरह की खुशी फ्रेजाइल होती है यानि यह ऐसी खुशी है जो छिछली होती है.

ऐसी खुशियां लंबे वक्त तक न आपको खुद की गहराई का अहसास दे सकती हैं और न ही आपके दिल को संतुष्टि. वैसे ऐसा भी नहीं कि किताब पढ़कर, जानकारी जुटाकर या साइकिल चलाकर आपको कोई बड़ी खुशी मिल जाएगी लेकिन एक अहसास जरूर मिलेगा कि आप एक बड़े उद्देश्य को पूरा करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. चाहे वह संवेदनशील और जागरुक समाज का निर्माण हो या पर्यावरण को संरक्षित करने का.

खुद में न खोए रहें, अपने दोस्तों से पूछें- क्या है आपमें कमी?

मैंने बहुत विचार के बाद इस बात पर विश्वास करना शुरू किया है कि हम भी इस दुनिया में एक जीव मात्र हैं, जो अपने आस-पास के माहौल को ज्यादा से ज्यादा नियंत्रित करने में जुटा रहा है. और मेरी हर अपने जैसे जीव से यह अपेक्षा रहती है कि वह इस प्रयास में कम से कम दूसरे जीवों के हितों को प्रभावित करे और ज्यादा से ज्यादा संवेदनशीलता और दूरदर्शिता के साथ अपने लिए खुशी और संतुष्टि के माहौल का निर्माण करें.

साथ ही मेरा यह भी मानना रहा है कि आज रहा हो या कल हमेशा हम वही होते हैं, जैसा हमारे आसपास के जीव हमारे बारे में सोचते हैं और जाने-अनजाने हमारे व्यक्तित्व के बारे में हमें अहसास दिलाते रहते हैं. यह भी एक वजह है कि हमारे आसपास हमारे दोस्त यानि वे जो खुलकर हमारे बारे में अपनी राय दे सकें, (फर्क नहीं पड़ता अच्छी या बुरी) होने चाहिए. ताकि हमें अपने आकलन के साथ ही दुनिया की नज़रों में झांकने का भी नजरिया मिले कि कैसे आपको समाज में रिसीव किया जा रहा है.

इन आदतों को डालने की कोशिश में दसियों बार रहा हूं फेल

बहरहाल बात अगर आदतों की हो रही थी तो जैसे मैंने आपके सामने बहुत सी ऐसी आदतों के बारे में बताया, जिन्हें दुनिया अच्छी आदतों में गिनती है तो मैं आपको उन बहुत सारी आदतों के बारे में भी बताया हूं, जिन्हें बनाने में मैं लाख कोशिशों के बावजूद भी फेल रहा. ऐसी ही कुछ कोशिशें रहीं, रोज़ लिख पाना, रोज़ एक्सरसाइज करना, घर के कामों में अपनी दोस्त की रोज़ मदद करना, रोज़ फिल्म देखना, नाखून चबाना छोड़ देना, 1 भी दिन नागा किए बिना नहाना और रोटी-सब्जी जैसा खाना बनाना सीखना. मैंने जब-जब अपनी सफलतापूर्वक डाली गई अच्छी आदतों के बारे में सोचा तो हमेशा इन प्रयासों का भी ख्याल रखा, जिन्हें तमाम कोशिशों के बाद भी कर पाने में मैं साल दर साल नाकाम रहा. लेकिन इन नाकामियों से मुझे एक पैटर्न मिला और एक फॉर्मूला भी, जिसे मैं आप सबके साथ आगे साझा करूंगा.

21 दिन तक करूंगा नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने की कोशिश

क्या पता जिन्हें मैं सालों से अपने नितांत निजी अनुभव मानता आया हूं, उनसे आपको कोई राह मिल जाए और ऐसी तमाम आदतों को डेवलप करना आपके लिए बेहद आसान हो जाए. फिलहाल मैं एक्सरसाइज़ के मोर्चे, और नाखून न चबाने की आदत पर काम कर रहा हूं, आगे के ब्लॉग में मैं जब आदतें बनाने और न बना पाने की वजहों पर विस्तार से बात करूंगा तो आपको यह भी बताता रहूंगा कि मैं एक्सरसाइज और नाखून न चबाने के मोर्चे पर कैसा कर रहा हूं. मैं कम से कम 21 दिन लगातार इसके लिए प्रयास करने वाला हूं (आपने भी 21 दिन की आदत के फॉर्मूले के बारे में सुना होगा). अपने प्रयास में जितनी बार चूकूंगा, उतनी बार फिर से 21 दिन वाली प्रैक्टिस शुरू से करूंगा. मैं आपको अपने बारे में बताते हुए ईमानदार रहूंगा क्योंकि मेरे पास आपका विश्वास पाने का और कोई विकल्प नहीं है. आप भी मुझे किसी ऐसी आदत के लिए चैलेंज कर सकते हैं जो आपने सालों-साल डालने की कोशिश की हो लेकिन आप असफल रहें हों. मैं कोशिश करूंगा (अगर मुझे इंट्रेस्टिंग लगी) कि हम साथ में उस आदत को डालने की कोशिश करें और तलाशें गलती कहां हो रही थी.

सिर्फ प्रेरणा के जरिए नहीं डाली जा सकती कोई अच्छी आदत

फिलहाल सिर्फ एक टिप देकर विराम लूंगा कि किसी आदत को डालने के लिए सिर्फ प्रेरणा या कह लें जोश या इंस्पिरेशन मात्र की जरूरत नहीं होती, इसके अलावा दसियों ऐसे फैक्टर होते हैं, जो मायने रखते हैं. आगे हम उनकी बात करेंगे. तब तक दिमाग लगाकर सोचिए कि वो हुनर कौन सा है, वो कला कौन सी है; जिसे आप सीख लें तो आप अपनी जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार हो सकते हैं? जब सोच लें तो कमेंट बॉक्स में बताइए भी. हां एक बात और कोरोना को लेकर हम सभी फिलहाल घर पर ही हैं, ऐसे में आप अपने बच्चों को, अपने फ्रेंड्स को भी यह ब्लॉग सजेस्ट कर सकते हैं ताकि वे घर पर अपने समय का सही इस्तेमाल कर सकें.

इसके बारे में आप उन सभी लोगों को भी बता सकते हैं, जिन्हें लेकर आपको लगता है कि वे बहुत जल्दी और बहुत ज्यादा अपनी जरूरतों और लक्ष्यों से भटकते हैं और करने कुछ और चलते हैं लेकिन करने कुछ और लगते हैं. मैं दावा नहीं करता कि इससे उनकी जिंदगी में कुछ बदल ही जाएगा लेकिन मैं, उनके साथ मिलकर अपनी और उनकी कमियों से भिड़ने की कोशिश जरूर करूंगा. जारी...

(नोट: आप मेरे लगातार नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने के दिनों को ब्लॉग में दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)