Thursday, March 19, 2020

अच्छी आदत कैसे डाली जाए?

अच्छी आदत डालने के लिए जोश से ज्यादा समझदारी की जरूरत होती है...

जब हम अकेले होते हैं और अपने बारे में सोचते हैं तो शायद ही कभी खुद को पूरी तरह संतुष्ट पाते हैं. अक्सर यही समझ आता है कि बहुत सारा समय हम गैर-जरूरी बातों में खर्च कर रहे हैं. उस समय लगता है कि अगर इस समय को बचाया जा सकता और किसी हुनर को सीखने में लगाया जा सकता तो हम कहां से कहां होते.

ऐसा भी नहीं कि हमने इसके लिए प्रयास न किए हों. जब कभी हमें अपनी अपनी ऐसी कमी का एहसास होता है तो जोश में आकर कभी हम कोई किताब उठा लेते हैं, जिम में इनरोल हो जाते हैं, पेंटिंग सीखने या बनाने लगते हैं, गाना या कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना सीखने लगते हैं, कोई भाषा सीखने लगते हैं या हेल्दी खाना खाने लगते हैं. लेकिन ऐसे सारे ही प्रयास 3 से 4 दिन भी लगातार नहीं चल पाते और कुछ दिनों में हमारा ध्यान दूसरे लक्ष्यों की ओर, दूसरी प्राथमिकताओं की ओर खिंच जाता है.

हमारे आसपास ही ऐसे लोग जो नौकरी के साथ सीख लेते हैं हुनर

ऐसा खासकर तब जरूर होता है, जब व्यक्ति नौकरीपेशा हो. ऐसी स्थिति में हमारे पास हमेशा यह बहाना होता है- 'नौकरी भी तो करनी है, कमाना बहुत जरूरी है. कमाएंगे नहीं तो यह सब क्या ही काम आएगा!' लेकिन कुछ लोग हमारे ही बीच ऐसे भी होते हैं, जो ऐसे प्रयासों में महारथी साबित होते हैं, वे रोज़ अखबार पढ़ रहे होते हैं, रोज़ किताबें पढ़ रहे होते हैं, लगातार किसी लैंग्वेज की प्रैक्टिस कर रहे होते हैं, रोज़ लिख रहे होते हैं और सबसे ज्यादा जरूरी, खुद को समय दे रहे होते हैं, नई प्लानिंग के लिए, अपने बारे में और अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए.

भले ही यह थोड़ी सी अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात लगे लेकिन मैं यहां बता देना चाहूंगा, 'मैं खुद को एक ऐसा ही इंसान मानता हूं.'

अपनी आदतों के जरिए कई मुश्किल लक्ष्य पाने में रहा सफल

ऐसा नहीं कि मैं यहां यह दावा कर रहा हूं कि मैं महान हूं या यह सब करके मैंने कोई बहुत बड़ी सफलता पा ली है. या जो लोग ऐसा नहीं कर रहे, वे अपनी जिंदगी बरबाद कर रहे हैं. लेकिन मैं यह दावा जरूर कर सकता हूं कि मैंने इस प्रयास के जरिए पिछले कुछ सालों में दो विदेशी भाषाओं की ठीक-ठाक जानकारी हासिल की है. भारत के बाहर क्या-क्या चल रहा है, इसे लेकर ठीकठाक जानकारियां हासिल की हैं. कुछ प्रसिद्ध तात्कालिक किताबों के बारे में जानकारी हासिल की है और उनके संक्षिप्त पढ़े हैं. सिर्फ 2019 में कुल 19 किताबें अगले कवर से पिछले कवर तक पढ़ीं.

इसके अलावा मैंने न सिर्फ पर्यावरण को बचाने के लिए साइकिल चलाने की ठानी बल्कि सफलतापूर्वक साइकिल से ऑफिस आने-जाने की आदत भी डाल ली. एक और बात ऐसा इंसान बनने के बाद मैंने न सिर्फ कई सारे दोस्त बनाए बल्कि उनके साथ अच्छा-खासा समय भी बिताया, हंसा, चाय की चुस्कियां लीं, बचपन और दूरदर्शन के किस्से शेयर किए, 500 किमी से ज्यादा की बाइकिंग की (जबकि जीवन में एक दौर तक मेरे दोस्तों की संख्या एक हाथ की उंगलियों से भी कम रही). इतना ही नहीं मैंने अपनी एक दोस्त को पॉलिटिकल साइंस पढ़ाकर इग्नू में 60 परसेंट से ज्यादा मार्क्स भी दिलाए.

यहां यह तस्वीर दे दी है ताकि जो मुझे नहीं जानते उन्हें यह न लगे मैं कुछ ज्यादा बढ़कर कर रहा हूं. पहला स्क्रीनशॉट दिखाता है कि लगातार सवा साल तक अपने लेसन रोज करने के बाद मैं एक दिन अपनी स्ट्रीक नहीं बचा पाया था. फिलहाल फिर पिछले दो महीने से फिर कोई लेसन नहीं मिस किया है...

एक बड़े उद्देश्य से जुड़े होने का अहसास आपको देता है संतुष्टि

मुझे पता है कि इसे पढ़कर आसानी से कुछ निंदक मेरे आत्ममुग्ध होने का अनुमान लगाएंगे. लेकिन मैं यकीन से कह सकता हूं कि लोग ऐसी ही जिंदगी की कल्पनाएं कर रहे होते हैं और न पाने पर अपना आत्मविश्वास कम कर रहे होते हैं. मेरा विश्वास है कि बहुत से लोग इनके बजाए पब जाने को, नए-नए लड़के या लड़कियों के साथ वक्त गुजारने को और दिन-रात सोशल मीडिया पर तारीफें बटोरने को ज्यादा खुशी देने वाली चीजें भले ही मानते हों लेकिन इस तरह की खुशी फ्रेजाइल होती है यानि यह ऐसी खुशी है जो छिछली होती है.

ऐसी खुशियां लंबे वक्त तक न आपको खुद की गहराई का अहसास दे सकती हैं और न ही आपके दिल को संतुष्टि. वैसे ऐसा भी नहीं कि किताब पढ़कर, जानकारी जुटाकर या साइकिल चलाकर आपको कोई बड़ी खुशी मिल जाएगी लेकिन एक अहसास जरूर मिलेगा कि आप एक बड़े उद्देश्य को पूरा करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. चाहे वह संवेदनशील और जागरुक समाज का निर्माण हो या पर्यावरण को संरक्षित करने का.

खुद में न खोए रहें, अपने दोस्तों से पूछें- क्या है आपमें कमी?

मैंने बहुत विचार के बाद इस बात पर विश्वास करना शुरू किया है कि हम भी इस दुनिया में एक जीव मात्र हैं, जो अपने आस-पास के माहौल को ज्यादा से ज्यादा नियंत्रित करने में जुटा रहा है. और मेरी हर अपने जैसे जीव से यह अपेक्षा रहती है कि वह इस प्रयास में कम से कम दूसरे जीवों के हितों को प्रभावित करे और ज्यादा से ज्यादा संवेदनशीलता और दूरदर्शिता के साथ अपने लिए खुशी और संतुष्टि के माहौल का निर्माण करें.

साथ ही मेरा यह भी मानना रहा है कि आज रहा हो या कल हमेशा हम वही होते हैं, जैसा हमारे आसपास के जीव हमारे बारे में सोचते हैं और जाने-अनजाने हमारे व्यक्तित्व के बारे में हमें अहसास दिलाते रहते हैं. यह भी एक वजह है कि हमारे आसपास हमारे दोस्त यानि वे जो खुलकर हमारे बारे में अपनी राय दे सकें, (फर्क नहीं पड़ता अच्छी या बुरी) होने चाहिए. ताकि हमें अपने आकलन के साथ ही दुनिया की नज़रों में झांकने का भी नजरिया मिले कि कैसे आपको समाज में रिसीव किया जा रहा है.

इन आदतों को डालने की कोशिश में दसियों बार रहा हूं फेल

बहरहाल बात अगर आदतों की हो रही थी तो जैसे मैंने आपके सामने बहुत सी ऐसी आदतों के बारे में बताया, जिन्हें दुनिया अच्छी आदतों में गिनती है तो मैं आपको उन बहुत सारी आदतों के बारे में भी बताया हूं, जिन्हें बनाने में मैं लाख कोशिशों के बावजूद भी फेल रहा. ऐसी ही कुछ कोशिशें रहीं, रोज़ लिख पाना, रोज़ एक्सरसाइज करना, घर के कामों में अपनी दोस्त की रोज़ मदद करना, रोज़ फिल्म देखना, नाखून चबाना छोड़ देना, 1 भी दिन नागा किए बिना नहाना और रोटी-सब्जी जैसा खाना बनाना सीखना. मैंने जब-जब अपनी सफलतापूर्वक डाली गई अच्छी आदतों के बारे में सोचा तो हमेशा इन प्रयासों का भी ख्याल रखा, जिन्हें तमाम कोशिशों के बाद भी कर पाने में मैं साल दर साल नाकाम रहा. लेकिन इन नाकामियों से मुझे एक पैटर्न मिला और एक फॉर्मूला भी, जिसे मैं आप सबके साथ आगे साझा करूंगा.

21 दिन तक करूंगा नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने की कोशिश

क्या पता जिन्हें मैं सालों से अपने नितांत निजी अनुभव मानता आया हूं, उनसे आपको कोई राह मिल जाए और ऐसी तमाम आदतों को डेवलप करना आपके लिए बेहद आसान हो जाए. फिलहाल मैं एक्सरसाइज़ के मोर्चे, और नाखून न चबाने की आदत पर काम कर रहा हूं, आगे के ब्लॉग में मैं जब आदतें बनाने और न बना पाने की वजहों पर विस्तार से बात करूंगा तो आपको यह भी बताता रहूंगा कि मैं एक्सरसाइज और नाखून न चबाने के मोर्चे पर कैसा कर रहा हूं. मैं कम से कम 21 दिन लगातार इसके लिए प्रयास करने वाला हूं (आपने भी 21 दिन की आदत के फॉर्मूले के बारे में सुना होगा). अपने प्रयास में जितनी बार चूकूंगा, उतनी बार फिर से 21 दिन वाली प्रैक्टिस शुरू से करूंगा. मैं आपको अपने बारे में बताते हुए ईमानदार रहूंगा क्योंकि मेरे पास आपका विश्वास पाने का और कोई विकल्प नहीं है. आप भी मुझे किसी ऐसी आदत के लिए चैलेंज कर सकते हैं जो आपने सालों-साल डालने की कोशिश की हो लेकिन आप असफल रहें हों. मैं कोशिश करूंगा (अगर मुझे इंट्रेस्टिंग लगी) कि हम साथ में उस आदत को डालने की कोशिश करें और तलाशें गलती कहां हो रही थी.

सिर्फ प्रेरणा के जरिए नहीं डाली जा सकती कोई अच्छी आदत

फिलहाल सिर्फ एक टिप देकर विराम लूंगा कि किसी आदत को डालने के लिए सिर्फ प्रेरणा या कह लें जोश या इंस्पिरेशन मात्र की जरूरत नहीं होती, इसके अलावा दसियों ऐसे फैक्टर होते हैं, जो मायने रखते हैं. आगे हम उनकी बात करेंगे. तब तक दिमाग लगाकर सोचिए कि वो हुनर कौन सा है, वो कला कौन सी है; जिसे आप सीख लें तो आप अपनी जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार हो सकते हैं? जब सोच लें तो कमेंट बॉक्स में बताइए भी. हां एक बात और कोरोना को लेकर हम सभी फिलहाल घर पर ही हैं, ऐसे में आप अपने बच्चों को, अपने फ्रेंड्स को भी यह ब्लॉग सजेस्ट कर सकते हैं ताकि वे घर पर अपने समय का सही इस्तेमाल कर सकें.

इसके बारे में आप उन सभी लोगों को भी बता सकते हैं, जिन्हें लेकर आपको लगता है कि वे बहुत जल्दी और बहुत ज्यादा अपनी जरूरतों और लक्ष्यों से भटकते हैं और करने कुछ और चलते हैं लेकिन करने कुछ और लगते हैं. मैं दावा नहीं करता कि इससे उनकी जिंदगी में कुछ बदल ही जाएगा लेकिन मैं, उनके साथ मिलकर अपनी और उनकी कमियों से भिड़ने की कोशिश जरूर करूंगा. जारी...

(नोट: आप मेरे लगातार नाखून न चबाने और एक्सरसाइज करने के दिनों को ब्लॉग में दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)

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