Tuesday, July 14, 2020

Brave New World: सोचने-समझने की आजादी के बिना सबसे संपन्न दुनिया भी एक जेल से ज्यादा कुछ नहीं

Brave New World किताब के अलग-अलग दौर के कवर
आज दुनिया की तरक्की मापने के आधार क्या हैं? आर्थिक तरक्की, मानसिक शांति, स्थायी व्यवस्था, उन्नत टेक्नोलॉजी और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं. लेकिन क्या आजादी के बिना इनका कोई मोल है? सही मायनों में आजादी, जिसमें सोचने के लिए/ कल्पना करने के लिए/ महत्वाकांक्षाएं रख सकने की सीमाएं अथाह हों. क्या उस सही मायनों वाली आजादी के बिना इन सभी आधुनिक पैमानों का कोई मूल्य है. इसी की पड़ताल करती है ब्रिटिश लेखक एल्डस हक्सले की किताब 'ब्रेव न्यू वर्ल्ड'.

हमारे आधुनिक राष्ट्र-राज्यों की महत्वाकांक्षा जिस दुनिया में पूरी हो चुकी है. जिस दुनिया में देशभक्तों की अपने देश को अभेद्य, सबसे ताकतवर, शक्तिशाली और स्थिर बनाने जैसी कल्पनाएं साकार हो चुकी हैं. राज्य ने अपने नागरिकों के जीन, सेक्सुएलिटी, विचारों और कल्याण के उपायों में इतनी स्थिरता ला दी है कि 'अगर ऐसा हुआ तो क्या करेंगे' जैसी छोटी-बड़ी सभी चिंताएं सुलझाई जा चुकी हैं. कोई डर, कोई असुरक्षा कहीं मौजूद नहीं है. कलाओं का नया उत्कर्ष है. सच्ची परफेक्टनेस अचीव हो चुकी है. गायन, वादन सहित कला का हर रूप, हर तरह से दोषहीन है. इसकी वजह यह है कि ये कलाएं गलतियों के पुतले मनुष्य के दिमाग की उपज न होकर बेहतरीन मशीनों/ रोबोट्स की उत्पाद हैं.

लेकिन ऐसी परफेक्ट दुनिया में भी एक आदमी के मन में थोड़ी सी असंतुष्टि और जिज्ञासा क्या पनपती है कि इस निष्कलंक दुनिया का संतुलन ही बिगड़ जाता है. लगभग खात्मे की कगार पर हमारे-आपके जैसे अपूर्ण इंसानों को इसी दुनिया के एक अलग हिस्से में म्यूजियम जैसी व्यवस्था में रखा गया है और हमपर असभ्यता का टैग लगा, प्रयोग किए जाते हैं. फिर ब्रेव न्यू वर्ल्ड के चंद असंतुष्ट शख्सों में से एक हम असभ्यों की खोज में रिसर्च का बहाना करके असभ्यों के म्यूजियम आता है और ब्रेव न्यू वर्ल्ड की ही एक पुरानी स्त्री जो कभी यहां आई थी और परिस्थितियोंवश यहीं फंस गई को खोज निकालता है. वह उसे और उसके बेटे को जब वह वापस लेकर जाता है तो न सिर्फ ब्रेव न्यू वर्ल्ड को बनाने में लगी अमानवीयता का पर्दाफाश हो जाता है बल्कि इसे चलाने वालों के धूर्त चेहरे भी सामने आ जाते हैं.

1932 में प्रकाशित इस उपन्यास में वर्तमान लक्षणों वाले लोकतंत्रों के चरित्र की गहन पड़ताल है. शक्तिशाली नेताओं के सामने किसी समाज के अपने विचारों, भावनाओं का समर्पण कर देने के बाद का राष्ट्र-राज्यों का स्वरूप है. मीडियोक्रिटी का चरमोत्कर्ष है और एक नशा है, जिसके बिना किसी व्यवस्था को अद्वितीय, सर्वश्रेष्ठ साबित करने का प्रयास मुमकिन नहीं हो सकता. कार्ल मार्क्स कुछ लोगों के लिए यह नशा धर्म को बताते थे, आजकल कहा जा रहा है कि झूठा राष्ट्रवाद नशा है, हो सकता है कहीं व्यापार प्रगति-आर्थिक उत्कर्ष ऐसा नशा हो. ब्रेव न्यू वर्ल्ड का संदेश है कि वह नशा कोई न कोई होता ही है, ब्रेव न्यू वर्ल्ड में यह नशा टेक्नोलॉजी और एक सीधे नशे 'सोमा' टेबलेट का है. जो किसी नागरिक को दुख का एहसास ही नहीं होने देती.

यह किताब 'ब्रेव न्यू वर्ल्ड' संदेश देती है कि चाहे जो हो लेकिन व्यक्ति और समाज में महत्वपूर्ण कौन के जवाब में अगर समाज कहा जाता रहेगा तो सरकारें निश्चय ही इसका फायदा उठायेंगीं. भला तभी होगा जब ऐसी कोई प्रतिस्पर्धा ही न हो और हर बात पर व्यक्ति या समाज को महत्वपूर्ण बताने के बजाए ऐसे समाज का निर्माण किया जाये, जिसमें व्यक्ति को तब तक हर तरह के व्यक्तिगत काम की आजादी हो, जब तक वह अन्य के लिए हानिकारक न हो.

No comments:

Post a Comment