Friday, July 10, 2020

HUSH: एक बेहतरीन हॉरर फिल्म है, जो डराती नहीं मजबूती देती है

फिल्म 'हश' (HUSH) का एक सीन...
2016 में रिलीज डायरेक्टर माइक फ्लैंगन की फिल्म हश की कहानी दो वाक्यों में यूं बताई जा सकती है- एक सूनसान इलाके में अकेले रहने वाली महिला के घर पर उसकी हत्या के इरादे से एक मास्क पहने आदमी हमला कर देता है. यह अज्ञात वहशी हत्यारा 'क्रॉसबो' (Crossbow- एक तरह का ऑटोमैटिक धनुष) से लैस है.

कहने को फिल्म की कहानी एमिटीविले हॉरर की घटना पर आधारित है. लेकिन फिल्म को सिर्फ एक हॉरर फिल्म की निगाह से देखने पर हो सकता है कि फिल्म की कुछ बारीक रीडिंग्स छूट जायें.

ध्यान देना होगा कि माइक फ्लैंगन की यह कोई पहली या आखिरी फिल्म नहीं है, जिसके केंद्र में एक महिला है. ऐसा उनकी ज्यादातर फिल्मों में है. सिर्फ महिला किरदार ही नहीं बल्कि महिला, वही भी अनोखे तरह की परिस्थितियों की शिकार. और माइक फ्लैंगन इन महिला किरदारों को रचने वाले जीनियस हैं.

हश एक नितांत अकेली महिला की कहानी है, जो गूंगी-बहरी है. प्रेम जीवन में भी असफल है. आस-पास के इलाके में वह सिर्फ एक महिला को जानती है. होता यूं है कि इस महिला का कत्ल भी उसे मारने आया हत्यारा, उसके पास ही कर देता है. और उसे सुन न पाने के चलते पता भी नहीं चलता. रात के अंधेरे में सुनसान जंगलों के बीच में अकेली रहती इस गूंगी-बहरी महिला का शिकार अब कितना आसान होगा?

इस पर ध्यान दें कि वह हत्यारा महिला को मारने नहीं आया है, उसका शिकार करने आया है. हत्या एक त्वरित क्रिया है, जिसमें एक झटके में इंसान मौत के घाट उतार दिया जाता है. कई बार हत्या की प्रक्रिया आवेश, गुस्से और बदले जैसी भावनाओं से प्रेरित होती है. लेकिन शिकार का एक मात्र उद्देश्य आनंद के लिए मारना होता है. शिकारी को धीरे-धीरे अपने शिकार को मारने से खुशी मिलती है. इस फिल्म में मौजूद हत्यारा वैसा ही है.

दरअसल यह एक हॉरर फिल्म के प्लॉट के साथ ही समाज के एक डरावने सच- पैट्रियार्की यानि पितृसत्ता का भी पोट्रेयल है. यह महिला जब तक घर में 'अकेली' है तभी तक सुरक्षित है. घर से जैसे ही वह बाहर कदम रखती है अनंत डरों से घिर जाती है. घर के बाहर भी वह तभी तक सुरक्षित है, जब तक वह प्लेटफॉर्म के नीचे छिपी हुई है, अज्ञात है. लेकिन हर समय शिकारी (पढ़ें पितृसत्ता) उसे खोज रहा है.

महिला जिस-जिस तरह से अपनी सहायता के लिए प्रयास करती है, चतुराई से उसे खत्म कर दिया जाता है. इसमें सबसे जरूरी है उसके बाहरी दुनिया से संपर्क के तरीकों को खत्म कर देना. इस शिकार में महिला को असहाय करना पहला और सबसे जरूरी कदम है. उसे चुप कराना प्राथमिकता है. उसकी सहायता में अगर कोई पुरुष भी खड़ा होता है, तो शिकारी (पितृसत्ता) उसे मिटा देती है. अगर ऐसा नहीं होता, तो फिल्म का नाम 'HUSH' क्यों होता.

महिला को लगातार चोट और मानसिक यंत्रणा देते हुए शिकारी (पैट्रियार्की) उसके दिमाग में यह स्थिति साफ कर देना चाहती है कि बाहर निकली तो मौत से उसे बचाया नहीं जा सकता है. महिला को खुद भी पता है कि लंबे समय के ट्रॉमा और चोटों ने उसे इस लायक छोड़ा ही नहीं है कि वह शिकारी (पैट्रियार्की) से अपनी जान बचा सके. ऐसे में उससे बचने का तरीका, उससे भागना कतई नहीं है. उससे बचने का तरीका सिर्फ उसका सामना करना है.

उत्साहित, मजबूत और अपने पुराने-घटिया शस्त्र (शस्त्र, जिन्हें शिकारी मानसिकता का पुरुष ही चला सकता है) से लैस शिकारी के मुकाबले, अपनी जान बचाती महिला का खुद पर विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी ताकत और हथियार है.

(फिल्म नेटफ्लिक्स पर मौजूद है)

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