भाजपा को लोकतांत्रिक नीतियां सीखने में वक्त लगने वाला है। लोकतांत्रिक नीचता के सारे पैंतरे उसे आते हैं। या ये कहें कि सत्ता का पहले-पहले मुंह देख रही ये पार्टी राजनीतिक कुलीनता से बिल्कुल भी अवगत नहीं है। यही वजह है कि गोवा में हार का मुंह देखने के बाद भी सारे पैंतरे आजमा कर भाजपा सरकार बनाने के सारे जोड़-तोड़ खेल रही है।
दरअसल कल रात ग्यारह बजे अचानक से अभी तक देश के रक्षा मंत्री रहे मनोहर पार्रिकर को गोवा भेजकर मुख्यमंत्री बना दिया गया है। ये तब हुआ है जब बीजेपी को गोवा में इस बार के विधानसभा चुनावों में 40 में से मात्र 13 सीटें मिली थीं। इतना ही नहीं उसकी सरकार में मंत्री रहे 8 में से 6 विधायक चुनाव हार गए थे। फिर स्वयं मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर अपना भी चुनाव जीत पाने में असफल रहे थे। यानी को बीजेपी के लिए गोवा की जनता का सीधा नकार था। पर सत्ता के मद में चूर प्रधानमंत्री मोदी ने और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह (हालांकि इससे बड़ा चाणक्य का अपमान शायद ही कुछ हो।) ने अपने लालच को पोसने के लिए जनता के फैसले को ठेंगा दिखा दिया है।
सारे ही मीडिया चैनल उनके इस फैसले को सेलिब्रेट करने में लगे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि ऐसे यूपी के मामले में 'जनता के फैसले- जनता के फैसले' चिल्लाते रहने वाले हमारे धृतराष्ट्र स्वरूप प्रधानमंत्री की नजर में गोवा और मणिपुर नहीं आते। मणिपुर में भी कांग्रेस के MLA काटने में भाजपा के चाणक्य (चाणक्य से माफी सहित) और उनके गुर्गे लगे हुए हैं। कांग्रेस ने जिस तरह से राज्य सरकारों के साथ भेदभाव और खिलवाड़ किया वो आलोचना का सबब है। पर जो ये हो रहा है इसे राज्यों के संदर्भ में सबसे काले पक्षों में से एक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
यह साफ है कि भाजपा का यह प्रयास उसकी बढ़ती आभासी छवि को पुख्ता करने का एक प्रयास भर है। पर ये भी साफ है कि ऐसा करके उसे कुछ खास फायदा होने वाला नहीं है। सारा फायदा कामों से होता है। जिसके लिए भाजपा के पास कोई रोडमैप नहीं है, सिवाए पूंजीपतियों को फायदा देने और देश में सांप्रदायिकता का माहौल बनाकर उसका फायदा उठाने के। इसलिए भाजपा को कुछ इंटेलेक्चुअल्स को अपने साथ जोड़ लेना चाहिए और उनके साथ आगे के भारत का एक रोडमैप तैयार कर लेना चाहिए। नहीं तो जिन बेरोजगार युवाओं को सदस्य बनाकर भाजपा ऊपर चढ़ी है। और सांप्रदायिकता के साथ अपना पथ प्रशस्त कर रही है वो जिस दिन असंतुष्ट हो गए, उसी दिन उसी गति से वापसी भी कर जाएगी।
आत्ममुग्ध अमित शाह और मोदी के लिए एक ही संदेश है कि सत्ता बहुत काम और जनता से जुड़ाव और कड़ी मेहनत चाहती है। लालच के लिए भारतीय राजनीति को बर्बाद न करें और जनता के फैसले का सम्मान करना सीखें।
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