Tuesday, March 14, 2017

ताऊजी


छवि- प्रतिरूप मात्र (इंस्टाग्राम)


महानगर में

लोगों के उजाड़ जंगलों के बीच
जब नए दरख्तों के साथ
पौधे भी कीट खाए
सड़े जाते हैं
घने पीपल के पेड़ सरीखे
अपनी मैली सफेद लुंगी में
अक्सर दिख जाते हैं
वो
बूढ़े हैं
पर जाने क्यों इलाके के जवान भी
उन्हें कहते हैं बच्चा
और वैसे ही रहते हैं सतर्क
कि जाने कब कर बैठें वो कोई शैतानी
उन्हें चिढ़ाते हैं
टांग खींचते हैं
पर मजाल कि वो कभी चिढ़ें या खिसियाएं
पलट कर उससे भी मजाकिया अंदाज में
देते हैं मुंह बंद कर देने वाले जवाब
तुनककर जवान बोल उठते हैं
अरे बिहारी बाभन हैं
मोहल्ले-गली के बच्चों से लेकर
बूढ़े-बूढ़ियों तक
हर इंसान की पूरी खबर रखते हैं
उनकी आंखों के नीचे पोपली होकर लटक आई खाल
किसी वटवृक्ष पर बांधे मधुमक्खी के छत्ते जैसी लगती है
मैंने बचपन में उनसे सीखे थे कुछ जुमले
पर सीखने को कहीं ज्यादा था
ये जवानी में जाना
जब उन्हें लगातार बुढ़ापे के दौर में
बिना शुगर
बिना किसी बीमारी
अपनी कुचैली लुंगी उठाकर
जवान लड़कों को
जो शराब के नशे में भटक कर नालियों में गिर गए थे
उठाकर उनके घर लाते देखा
उनके गोरे चेहरे पर दाढ़ी जब छिल जाती हैं
तो यूं लगता है जैसे किसी पीली घास के मैदान में
ओस बरसी हो
मैं उनके चेहरे पर कितने चक्कर मार चुका हूं
इसी सुकून की तलाश में
जो मुझे याद दिलाता है
कि मैं कहूं
महानगर में
लोगों के उजाड़ दरख्तों के बीच
जब नए पेड़ों के साथ
पौधे भी कीट खाए
सड़े जाते हैं
घने पीपल के पेड़ सरीखे
अपनी मैली सफेद लुंगी में
अक्सर दिख जाते हैं
वो

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