Tuesday, May 5, 2020

शेखर कपूर की फिल्म Bandit Queen पर अरुंधति राय के आलोचनात्मक लेख The great Indian Rape-Trick I का हिंदी अनुवाद

बैंडिट क्वीन में शेखर कपूर ने कई थिएटर कलाकारों को एक्टिंग का मौका दिया, जो आगे इंडस्ट्री में बड़े नाम बने (फोटोः फर्स्टपोस्ट हिंदी)

महान भारतीय बलात्कार छल- 1


दिल्ली में बैंडिट क्वीन की प्रीमियर स्क्रीनिंग पर शेखर कपूर ने इन शब्दों के साथ फिल्म का परिचय दिया, मेरे पास सच और सौंदर्य के बीच एक चुनाव था. मैंने सच को चुना, क्योंकि सच पवित्र है.

इस बात पर जोर देना कि फिल्म सच बताती है ही उनके लिये सबसे बड़ी कॉमर्शियल और क्रिटिकल महत्व रखता है. बार-बार इंटरव्यू में, रिव्यू में और यहां तक कि फिल्म की शुरुआत में लिखा हुआ, 'यह एक सत्यकथा है' हमें यह भरोसा दिलाया जाता है.

अगर यह 'सच' नहीं होती. तो इसे उसी रेप और बदला थीम के क्लासिक वर्जन वाली चक्की से क्या बचाता जिसे हमेशा गाहे-बगाहे हमारी फिल्म इंडस्ट्री मथती रहती है. तो इसे इस सुपरिचित आरोप कि यह भारत को सही तरह से चित्रित नहीं किया गया है? वाकई कुछ भी नहीं.

यह 'सच' ही है जो इसे बचाता है. हर बार, जब यह स्विस चाकू लेकर सुपरमैन की तरह गोते लगाती है- और फिल्म को बेकार, नीरसता के जबड़े से खींच निकालती है. इसने सुर्खियां बनाईं. मुंहफट तर्क खींचे. और गहन आलोचना भी.

अगर आप कहें कि आपने फिल्म को बेमज़ा पाया, आपको बताया जायेगा- खैर ऐसा ही सच भी होता है- बेमजा. जोड़-तोड़ से भरा? ऐसी ही जिंदगी है- जोड़-तोड़ वाली.

यह ट्रकों के पीछे लिखे ऐसे ही डायलॉग जैसा कुछ-कुछ है -

प्यार ही ईश्वर है
जीवन कठिन है
सच ही पवित्र है
हॉर्न बजायें

चाहे हो या न हो सच और ज्यादा प्रासंगिक नहीं रह गया है. मसला यह है कि यह (अगर यह पहले से ही नहीं हो चुका है) - सच बन जायेगा.

फूलन देवी, एक औरत का महत्वपूर्ण होना खत्म हो चुका है. (हां यह भले ही सच है कि वह मौजूद है. उसकी आंखें हैं, कान हैं, अंग और बाल आदि हैं. बल्कि अब एक पता भी) लेकिन वह एक लीजेंड होने के शाप से ग्रसित हैं. वह केवल अपना एक वर्जन भर हैं. यहां उनके दूसरे वर्जन भी हैं जो कि ध्यान खींचने के लिये झगड़ रहे हैं. खासकर शेखर कपूर की एक सच्ची कथा. जिसपर फिलहाल हमें यकीन करने के लिये काफी जोर दिया जा रहा है.

डेरेक मैल्कम, द गार्डियन अख़बार में लिखते हैं, यह एक ऐसी कहानी है, जो अगर कोई फिक्शन का टुकड़ा होती, तो इसे क्रेडिट देना कठिन हो जाता कि यह फूलन देवी की असली कहानी है जो भारतीय बाल विवाहित है.

लेकिन क्या ऐसा है? यह सत्यकथा है? कोई कैसे यह तय करेगा? कौन तय करेगा?

शेखर कपूर कहते हैं कि फिल्म माला सेन की किताब - इंडिया की बैंडिट क्वीन : फूलन देवी की सच्ची कहानी (इंडियाज बैंडिट क्वीन : द ट्रू स्टोरी ऑफ फूलन देवी). किताब कहानी को पुनर्गठित करती है, इंटरव्यू के जरिये, न्यूजपेपर रिपोर्ट्स के जरिए, फूलन देवी से मुलाकातों के जरिए और फूलन देवी के लिखित वर्णन से लिए उद्धरणों के जरिए, जो कि जेल से उनसे मिलने जाने वालों ने तस्करी किये थे, हालांकि एक वक्त में कुछ एक पेज कर-करके ही.

कभी-कभी एक ही वाकये के कई सारे वर्जन - वर्जन जो एक-दूसरे से सीधे टकराते हैं जैसे फूलन का वर्जन, एक पत्रकार का वर्जन, और एक चश्मदीद गवाह का वर्जन - जिन सभी को किताब में पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है. इससे जो उभरता है वह एक जटिल, बुद्धिमान और इंसानी किताब है. अस्पष्टता, चिंता और उत्सुकता से भरी कि जिस औरत को फूलन देवी कहा जाता है, वह असलियत में है क्या.

शेखर कपूर जिज्ञासु नहीं थे.

उन्होंने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि उन्हें महसूस नहीं हुआ कि उन्हें फूलन से मिलने की जरूरत है.  उनके प्रोड्यूसर बॉबी बेदी इस फैसले का समर्थन करते हैं,  "शेखर उससे मिला होता अगर उसे इसकी जरूरत महसूस हुई होती." (संडे ऑब्जर्वर, 20 अगस्त, 1944)

जारी...

लेख के बारे में-

22 अगस्त 1994 को लिखा गया अरुंधति राय का लेख The Great Indian Rape-Trick I, शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन की मानवतावादी (न कि सिर्फ नारीवादी) दृष्टिकोण से फिल्म की आलोचना है. पॉपुलर आयामों में, खासकर कला को एक प्रॉडक्ट की शक्ल देते हुए, हो जाने वाली गलतियों को यह उजागर करता है.

अनुवाद के बारे में- 

करीब 2 साल से इस अनुवाद को पूरा करने की इच्छा थी ताकि हिंदी के पाठक जो अक्सर शेखर कपूर की इस फिल्म को लेकर कई वजहों से लहालोट रहते हैं, इसकी कमियों को भी बारीकी से समझें.

(नोट: इस बड़े लेख का कई हिस्सों में अनुवाद कर रहा हूं. इससे पहले किए किताबों के अनुवाद आप इससे पहले के ब्लॉग में पढ़ सकते हैं. आप मेरे लगातार लिखने वाले दिनों को ब्लॉग के होमपेज पर [सिर्फ डेस्कटॉप और टैब वर्जन में ] दाहिनी ओर सबसे ऊपर देख सकते हैं.)

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