अमेरिका जैसे महाद्वीपों की खोज के बाद चली प्रक्रिया से यूरोप के सांस्कृतिक अहं को नुकसान हुआ |
एक भाषाई क्रांति ने यूरोप में 19वीं शताब्दी के राष्ट्रवाद को बढ़ाया
सदियों तक यूरोप खुद को दुनिया में अकेला महाद्वीप मानता आया था. इसे विश्वास था कि इसे ईसाईयत और प्राचीन ग्रीस की सांस्कृतिक और नैतिक विरासत के उत्तराधिकारी के तौर पर दिव्य रूप से चुना गया था. इसका मतलब यह था कि यह केवल एक श्रेष्ठ सभ्यता नहीं थी, यह दुनिया की एकमात्र सभ्यता थी. लेकिन, यह विश्वविजयी दृष्टिकोण, यूरोप के अमेरिका की खोज कर लेने के बाद जीवित नहीं रह सका.
1500 से अन्य सभ्यताओं के संपर्क में आने के बाद, यूरोपीय लोग भाषाओं के अध्ययन में अधिक रूचि लेने लगे. शुरुआत में यह आवश्यकता के चलते हुआ- नाविकों और व्यापारियों को आखिरकार उन लोगों से संवाद की जरूरत होती थी, जिनसे उनका यात्राओं के दौरान सामना होता था.
हालांकि, समय बीतने के साथ, संस्कृत और मिस्र की चित्रलिपि जैसी प्राचीन भाषाओं के अध्ययन के जरिए कुछ चौंकाने वाली खोजें सामने आईं. यह था कि न केवल प्राचीनता अधिक विविधतापूर्ण थी बल्कि कई सभ्यताएं तो ग्रीक और यहूदी दुनिया, जिनके आधार पर यूरोपीय संस्कृति विकसित हुई थी, से बहुत पुरानी थीं. एक बहुलवादी दुनिया में, लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला कि साधारण तरह से यूरोप सिर्फ कई सभ्यताओं में से एक है और जरूरी नहीं है कि यह सबसे अच्छा है.
लेकिन अगर सभी भाषाओं ने एक जैसी, दुनियावी स्थिति साझा की तो क्या वे सभी अध्ययन और प्रशंसा के लिए समान रूप से योग्य नहीं होंगी? 19वीं शताब्दी के यूरोपियों के लिए, यह उत्तर एक 'हां' की गूंज था. इसने एक शब्दकोष संबंधी क्रांति की शुरुआत की क्योंकि भाषा विज्ञानियों और व्याकरणविदों ने लोककथाओं और साहित्यिक इतिहास के साथ-साथ स्थानीय भाषा के शब्दकोषों को संकलित करना शुरू कर दिया.
इन विद्वानों ने स्थानीय भाषाओं पर जिनती अधिक देर गौर किया, वे उतने ही ज्यादा आश्वस्त हुए कि उन्हें बोलने वालों ने विशिष्ट समुदायों का गठन किया है. यह खोज वह आधार था, जिसके आधार पर राष्ट्रवादी संगठनों ने स्वतंत्र पहचान का तर्क दिया.
उदाहरण के लिए पहला यूक्रेनी व्याकरण, 1819 में सामने आया. दस सालों के अंदर, यूक्रेनियन को कवि और लोकगीतकार तारास शेवचेंको द्वारा एक आधुनिक साहित्यिक भाषा के तौर पर ढाल दिया गया. 1846 में पहला यूक्रेनी राष्ट्रवादी संगठन कीव में स्थापित किया गया. बेरूत से, जहां अमेरिका शिक्षित ईसाईयों ने 1860 में आधुनिक अरबी का मानकीकरण किया, वहीं 1870 के दशक में यह मानकीकरण ओस्लो में हुआ, जहां 1850 में नॉर्वे का पहला शब्दकोष छपा था, इसी पैटर्न को दोहराया गया था. क्षेत्रीय भाषाओं को व्यवस्थित किया जाना, राष्ट्रीय समुदाय की कल्पना का एक तरीका ही नहीं था, यह इसे अस्तित्व में लाने का एक तरीका था.
हर व्यक्ति विशिष्ट है, उसका अपना राष्ट्रीय चरित्र है, जो उसकी अपनी भाषा द्वारा व्यक्त होता है. - जर्मन कवि जॉन गॉटफ्रेड हेर्डर (1744-1803)
किताब के बारे में-
काल्पनिक समुदाय की अवधारणा को बेनेडिक्ट एंडरसन ने 1983 मे आई अपनी किताब 'काल्पनिक समुदाय' (Imagined Communities) में राष्ट्रवाद का विश्लेषण करने के लिए विकसित किया था. एंडरसन ने राष्ट्र को सामाजिक रूप से बने एक समुदाय के तौर पर दिखाया है, जिसकी कल्पना लोग उस समुदाय का हिस्सा होकर करते हैं. एंडरसन कहते हैं गांव से बड़ी कोई भी संरचना अपने आप में एक काल्पनिक समुदाय ही है क्योंकि ज्यादातर लोग, उस बड़े समुदाय में रहने वाले ज्यादातर लोगों को नहीं जानते फिर भी उनमें एकजुटता और समभाव होता है.अनुवाद के बारे में-
बेनेडिक्ट एंडरसन के विचारों में मेरी रुचि ग्रेजुएशन के दिनों से थी. बाद के दिनों में इस किताब को और उनके अन्य विचारों को पढ़ते हुए यह और गहरी हुई. इस किताब को अनुवाद करने के पीछे मकसद यह है कि हिंदी माध्यम के समाज विज्ञान के छात्र और अन्य रुचि रखने वाले इसके जरिए एंडरसन के कुछ प्रमुख विचारों को जानें और इससे लाभ ले सकें. इसलिए आप उनके साथ इसे शेयर कर सकते हैं, जिन्हें इसकी जरूरत है.
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