आग को चाहिए हर लहज़ा चबाने के लिए
खुश्क करारे पत्ते,
आग कर लेती है तिनकों पे गुज़ारा लेकिन...
आशियानों को निगलती है निवालों की तरह,
आग को सब्ज़ हरी टहनियाँ अच्छी नहीं लगतीं,
ढूँढती है कि कहीं सूखे हुए जिस्म मिलें!
उसको जंगल की हवा रास बहुत है फिर भी,
अब ग़रीबों की कई बस्तियों पर देखा है हमला करते,
आग अब मंदिर मस्जिद की ग़िज़ा खाती है!
लोगों के हाथ में अब आग नहीं...
आग के हाथों में कुछ लोग हैं अब।
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